कानूनी बदलाव कर, करते कालेधन पे ऐश !! बैंकों में जमा करा के, कर्जे कर लिये माफ ! रकम बाँटने के लिये, किये सारे रस्ते साफ !! तीन वर्ष की, औसत आय का, साड़े सात प्रतिशत ! दल को दान, दे ना सकते थे, इससे अधिक दौलत !! इस नियम को बदल दिया और अरबों लिये समेट ! काला हो या सफ़ेद धन, इसका यहां नहीं कोई भेद !! देश से ही नहीं अब तो, दुनियाभर से ले सकते ! दोनों हाथों समेट के कैसे, दूध धुले बन सकते !! आमजन को समझ नहीं, हरगिज नहीं यह बात ! जनजन को जानबूझ, मुसीबतों में उलझात !! इन सभी से, जनसमझ की, ताकत घटा दी जाती ! सारी दौलत, नेताओं के ही, इर्द गिर्द इठलाती !! जनकोष डकैती की रकम, ऐब - ऐश बढाती ! अपराध प्रवृति भी इससे, दिनदुनी बढ़ती जाती !! आये दिन गांव गली में, अस्मत लूट ली जाती ! अपराधियों की सालों साल, सजा टलती जाती !! भूखे प्यासे लोगों की, है देश में भरमार ! नई आस में अदल बदल के, चुन लेते सरकार !! कभी किसी सरकार ने, जन पे दिया ना ध्यान ! दिखावे में ही, खींचे जाते, इक दूजे के कान !! मेहनत से कमाया धन, जन, करे बैंक में जमा ! बड़े बड़े ले उड़ते उसे, नियमों को धता बता !! मशीनमन, मशीनरीमन, जनमन पर भारी ! हमरी दमड़ी लूट के, रख लेत मशीनगन धारी !! चक्रव्यूह को भेदन हेतु, लगेंगे कई अभिमन्यु ! एक साथ कई मंचों से, जन भी रचे चक्रव्यूह !! जनहित चिन्तकों के, साथ जब सभी खड़े रहेंगे ! अनमोल आज़ादी के चमन में, तभी फूल खिलेंगे !! -आवेश हिन्दुस्तानी (संपर्क सूत्र: व्हाटसऍप WhatsApp - +91 9765906498) |
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