विशेष पेशकश ( भूले बिसरे सदाबहार साहित्यकार - १ ) - सृजन-मूल्यांकन के इस अंक में आओ मिलें इनसे, यह जो प्रकाश मनु हैं
साहित्य-जगत के चर्चित हस्ताक्षर एवं बहुमुखी प्रतिभा के धनी प्रकाश मनु पर केंद्रित ‘सृजन मूल्यांकन’ पत्रिका के विशेषांक का आरंभ ‘संपादकीय’ से हुआ है. संपादक अनामीशरण ने अपने संपादकीय में पत्रिका के आरंभ से अब तक की यात्रा के कठिन और सुखद पड़ावों के साथ पत्रिका की संघर्षमयी, चलती-रुकती किंतु मंजिल की और बढ़ती यात्रा का पूरा ब्योरा दिया है. उन्होंने इस आशा और शुभ संकल्प के साथ विशेषांक का संपादन किया है कि आगे इसकी यात्रा निरंतर चलती रहे. कहीं यह इच्छा भी बलवती है कि अनियमित रूप से निकलने वाली यह पत्रिका प्रस्तुत अंक के साथ नियमित हो और बड़े-बड़े दिग्गज साहित्यकारों के सृजन के मूल्यांकन के साथ पाठकों को प्राप्त होती रहे.
इसके बाद ‘अतिथि संपादक की कलम से’ लिखा गया बड़ा ही सुंदर और आत्मीय संपादकीय श्याम सुशील का है. इस महत्त्वपूर्ण संपादकीय की शुरुआत श्याम सुशील ने प्रकाश मनु की एक अत्यंत मार्मिक कविता से की है, जो उन्होंने अपने चालीसवें जन्मदिन पर लिखी थी. कविता के साक्ष्य से कहें तो उन्हें उस दुनिया से शिकायत है, जिसने उन्हें तिल भर भी ममतालु जगह नहीं दी. उम्र के वे चालीस वर्ष जैसे खोटे सिक्कों की तरह व्यर्थ ही बीत गए-
एक-एक कर खोटे सिक्कों की तरह उछालते
एक-एक साल
मैंने बिता ही लिए आखिर अपनी उम्र के
चालीस साल...
चालीस खोखले साल इस दुनिया में जिसमें
नहीं तिल भर ममतालु जगह मेरे लिए
नहीं कंधे पर कोई हाथ
सामने कोई पगडंडी... रास्ता...!
सुशील का मानना है कि यह ‘तिल भर ममतालु जगह’ प्रकाश मनु ने अपने सार्थक जीवन और लेखन के माध्यम से हासिल करने की कोशिश की. उनके मन में ‘चालीस खोखले साल’ खोने का गम नहीं, वरन् जो पाया है, वह सबसे बड़ी कामयाबी है और प्रकाश मनु के लिए कामयाबी का अर्थ कुछ पाना नहीं, कुछ कर गुजरना है.
पूरी पत्रिका को विषयानुसार चार खंडों में बाँटा गया है. पहले खंड ‘शब्द और सतरों के बीच’ में प्रकाश मनु के व्यक्तित्व और कृतित्व से जुड़े चौबीस आलेख हैं. दूसरा खंड ‘यह जो प्रकाश मनु है’ मुख्य रूप से संस्मरण खंड है, जिसमें बत्तीस दिग्गज साहित्यकारों, मित्रों एवं स्नेही परिवारी जनों के संस्मरण हैं. ‘संवाद अनायास’ में डॉ सुनीता मनु के साथ श्याम सुशील की और प्रकाश मनु के साथ अनामीशरण की अंतरंग बातचीत है, जिसमें प्रकाश मनु के व्यक्तित्व के बहुत से अनदेखे, अनछुए पहलुओं से पाठक रू-ब-रू होता है. चौथा ‘रचना खंड’ है, जिसमें प्रकाश मनु के ‘आत्मकथ्य’ के अलावा उनकी कुछ चुनिंदा रचनाएँ भी हैं.
पत्रिका का प्रारंभ बालस्वरूप राही की कविता ‘मानसरोवर के हंस’ से होता है जिसमें उनकी शुभकामनाएं हैं कि प्रकाश मनु की रचनाएं निरंतर साहित्य-जगत में जगमगाती रहें. दूसरा आलेख ‘धूसर उजालों में निखरता एक व्यक्तित्व’ है, जिसमें लेखिका कानन झींगन ने उनके जादुई व्यक्तित्व और कृतित्व के विविध पहलुओं की चर्चा करते हुए, उनके बाल साहित्य के इतिहासकार रूप को उनके जीवन का सबसे बड़ा सारस्वत प्रयास कहा है. डॉ. शेरजंग गर्ग के अनुसार प्रकाश मनु ‘कविमना’ और ‘साहित्यमुग्ध’ वह हस्ती हैं, जिनमें कठिन परिस्थितियों में भी हिम्मत न हारने का अनूठा हौसला है. वे बाल साहित्यकार, विशेष रूप से बालकवि मनु की कविताओं पर मुग्ध हैं. उनका मानना है कि एक जीवंत भाषा, लयात्मक शैली और बालसुलभ सरलता के कारण प्रकाश मनु की बालकविताएं अत्यंत श्रेष्ठ हो गई हैं.
डॉ. शकुंतला कालरा अपने आलेख ‘सृजन, आलोचना और इतिहास लेखन की त्रिवेणी’ में प्रकाश मनु के इन तीनों रूपों से पाठकों को रू-ब-रू कराती हैं. उनकी दृष्टि में डॉ. प्रकाश मनु के सभी रूप महत्त्वपूर्ण हैं, लेकिन सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण उनके बाल साहित्य के इतिहासकार का रूप है. तीनों रूपों में महारथ हासिल करने वाले डॉ. प्रकाश मनु की लेखनी हर दिशा में समान रूप से निरंतर सक्रिय है. आरती स्मित ‘बाल-सखा प्रकाश मनु के रचना-वैविध्य’ को विवेचित और विश्लेषित करती हुई उन्हें एक समर्पित साहित्यकार, बेहतर रचनाकार, बेहतर पत्रकार, उत्कृष्ट समीक्षक और श्रेष्ठ आलोचक के रूप में तो प्रतिष्ठित करती ही हैं, साथ ही, इन सबसे ऊपर वे उन्हें एक संवेदनशील, विवेकी, सहयोगी, सरल और सच्चा व्यक्ति मानती हैं, जिनकी छाप उनकी कृतियों में दिखाई देती है.
मो. अरशद खान उन्हें ‘उजली हँसी के कथाकार’ मानते हैं तो मंजुरानी जैन अपने आलेख ‘प्रकाश मनु जी और उनका विपुल सृजन’ में उनकी भूरि-भूरि प्रशंसा करती हैं, जिसने पाठकों का दिल मोहा है. भगवतीप्रसाद गौतम ने सृजनशीलता की दृष्टि से उनके कद को बहुत बड़ा कहा है तो मो. साजिद खान उनकी किस्सागोई पर मुग्ध हैं. उनकी दृष्टि में प्रकाश मनु बाल साहित्य के बेजोड़ कथाकार हैं. गिरिराजशरण अग्रवाल और पिंकी बिड़ला उनके नाटकों पर मुग्ध हैं. उनका मानना है कि प्रकाश मनु ऐसे नाट्य-लेखक हैं, जिनके नाटक ‘बालकों में आशा की ज्योति’ जगाते हैं. ‘उपन्यासों में संवेदना और शिल्प की नव्यता’ आलेख में शिवरानी ने उन्हें सफल कथाशिल्पी माना है और उनके तीन प्रसिद्ध उपन्यासों ‘यह जो दिल्ली है’, ‘कथा सर्कस’ और ‘पापा के जाने के बाद’ की चर्चा करते हुए आम आदमी के दर्द, पीड़ा और संघर्ष को उनके उपन्यासों की मूल विशेषता माना है.
प्रकाश मनु के गृहनगर शिकोहाबाद के ही चर्चित व्यंग्यकार अरविंद तिवारी ने उनके विद्रोही स्वभाव की प्रबलता का उल्लेख किया है, जब उन्होंने खिड़कियों के पट लगवाने के लिए अपनी क्लास में ही, ठीक ब्लैकबोर्ड के नीचे बैठकर धरना शुरू कर दिया था. अंततः कॉलेज के प्रबंधन को खिड़कियों में पट लगवाने पड़े. रमेशकुमार सिंह की दृष्टि में प्रकाश मनु बाल साहित्य के प्रकाश-स्तंभ और चलते-फिरते विश्वकोश हैं, तो शिवचरण सरोहा उन्हें ‘बाल साहित्य का सूर्य’ मानते हैं. जिज्ञासा आर. सीतापरा ने उन्हें बाल साहित्य का सिद्धहस्त लेखक कहा है. अखिलेश श्रीवास्तव ‘चमन’ ने उन्हें ‘हिंदी बाल साहित्य का एक मौन साधक’ कहा है, जो अपनी सरलता, सज्जनता, विनम्रता और कर्मठता से किसी भी अपरिचित को पहली ही मुलाकात में मुरीद बना लेते हैं. प्रह्लाद श्रीमाली उनके कहानी जगत् के अनूठेपन से प्रभावित होकर कहते हैं, ‘बच्चों में अनायास संस्कार चेतना पैदा करती हैं उनकी कहानियाँ’. अपनी बाल कहानियों में वे ऐसी स्थिति-परिस्थिति बुनते हैं, जिनके आधार पर बच्चों के भीतर मानवीय मूल्यों के लिए चेतना उत्पन्न हो. वे उपदेश नहीं देते, हालाँकि उनकी कहानियों में छिपा हुआ संदेश स्वतः ही बच्चों के मन में उतरता चला जाता है. अश्वनीकुमार पाठक और फहीम अहमद ने उनकी कविताओं में कुछ अलग ही तासीर पाई है. शोध-छात्रा कमलजीत कौर का निष्कर्ष है कि प्रकाश मनु का साहित्य केवल कल्पना के पंखों पर ही नहीं उड़ता, बल्कि धरातल की भी बात करता है. वघाडिया हिना ने प्रकाश मनु के बाल उपन्यास ‘गोलू भागा घर से’ के इस संदेश को सामने रखा है कि माता-पिता को चाहिए, वे बच्चों के मन में चल रही भावनाओं की आँधी और गहरी उधेड़बुन को समझें, वरना ऐसे गोलू पैदा होते रहेंगे और घर से भागते रहेंगे.
पत्रिका का दूसरा खंड संस्मरणों की सुगंध लिए है. ‘प्रकाश मनु आत्मीयता का स्पंदन’ हैं- ये हृदय उद्गार हैं प्रतिष्ठित कवि और कथाकार रामदरश मिश्र के. इस संस्मरण में उनकी पहली मुलाकात से लेकर अब तक की ढेरों मधुर और प्यारी स्मृतियाँ अंकित हैं. उन्होंने कहा है कि प्रकाश मनु ने सत्यार्थी जी और शैलेश मटियानी जी पर बहुत मन से लिखा-लिखाया है, वरना साहित्य के परिदृश्य से वे विलुप्त कर दिए गए थे. प्रकाश मनु के अंतरंग मित्र और प्रसिद्ध चित्रकार हरिपाल त्यागी ने ‘मेरे मित्र और एक आत्मीय शख्सियत’ लेख में बहुत भावनात्मक लहजे में उन्हें याद किया है. उनका मानना है कि इतना विपुल साहित्य-सृजन करने वाले प्रकाश मनु स्वयं में एक संस्था हैं। प्रकाश मनु के वरिष्ठ सहकर्मी एवं घनिष्ठ मित्र देवेंद्र कुमार की यह धारणा उन्हें पहली बार ‘नंदन’ कार्यालय में देखते ही बन गई थी कि यह ‘आदमी कुछ अलग सा’ है. इसी प्रकार रमेश तैलंग ने भी अपने संस्मरण में उन्हें हिंदुस्तान टाइम्स में काम करते हुए ‘एक धुनी और गुनी साहित्यकार’ के रूप में याद किया है. विगत पच्चीस वर्षों के अपने साथ में प्रकाश मनु में आए सकारात्मक परिवर्तन का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा है कि ज्यों-ज्यों मनु का रचनात्मक कद बढ़ा है, उनकी अंदर की विध्वंसात्मक ऊर्जा शांत होती गई. उनका कहना है कि मनु की रचनात्मक ऊर्जा के पीछे उनकी लेखिका पत्नी डॉ. सुनीता की सतत शक्ति रही हैं.
सत्तर साल की उम्र में भी ‘प्रकाश मनु में एक बच्चा हमेशा रहता है’. यह अनुभव इस संस्मरण के लेखक वल्लभ सिद्धार्थ के साथ-साथ उन्हें मिलने वाले सभी मित्रों का है. ‘कवि भाई के साथ कुरुक्षेत्र के वे दिन’ में प्रकाश मनु के गर्दिश के दिनों के साथी और निकटस्थ मित्र ब्रजेश कृष्ण बहुत सारी कही-अनकही घटनाओं को याद करते हैं, जो उनकी स्मृति में चित्र की तरह अंकित हैं. प्रकाश मनु उन दिनों ‘रुद्र’ उपनाम से कविताएँ लिखते थे, और उनमें अपने इस नाम के अनुरूप खौलता हुआ गुस्सा रहता था. ब्रजेश भाई स्वीकार करते हैं, कि यही कविताएँ उन्हें प्रकाश मनु के नजदीक ले आईं. प्रकाश का कुरुक्षेत्र में आना वे अपने लिए वरदान मानते हैं. अपने इस संस्मरण में उन्होंने प्रकाश मनु से उनके शोध-निर्देशक हिंदी विभाग के अध्यक्ष रामेश्वरलाल खंडेलवाल ‘तरुण’ की नाराजगी का भी जिक्र किया है, जिसकी प्रकाश मनु को आगे चलकर काफी कीमत चुकानी पड़ी. दिविक रमेश ने प्रकाश मनु को ‘सतत परिश्रम और संकल्प की सच्ची प्रतिमूर्ति’ कहा है और अपने संस्मरण में उनके बहुआयामी सृजन को मूल्यांकित करते हुए उनके बाल साहित्य के प्रति योगदान को अविस्मरणीय माना है.
महाबीर सरवर ने प्रकाश मनु और डॉ सुनीता मनु से जुड़ी अनेक पारिवारिक सुखद स्मृतियों की चर्चा करते हुए, प्रकाश मनु की रचनाशीलता की प्रशंसा की है. वे आज के मनु को पूर्णतः साहित्य-सृजन के लिए समर्पित, संयत और दंभहीन शख्सियत के रूप में देखते हैं जो एक तपस्वी के एकांत में रहते हुए सतत रचनाशील हैं. योगेंद्रदत्त शर्मा की दृष्टि में ‘साहित्य के लिए ऐसी मस्ती और दीवानापन.....!’ मनु के अतिरिक्त और कहाँ हो सकता है? वे बेमिसाल नगीना हैं. उनके विषय में वे लिखते हैं, ''सम्मान-पुरस्कार की जुगत, जुगाड़, जोड़-तोड़, मारामारी और गलाकाट प्रतियोगिता के इस दौर में यह किस प्रजाति का जीव है, जो सारी चमक-दमक और चकाचौंध से पीठ फेरकर खड़ा हुआ है. न सिर्फ खड़ा है, बल्कि तनकर खड़ा है और अपनी फक्कड़ मस्ती में झूम भी रहा है. ऐसा इसलिए कि उसने नशा कर रखा है. यह नशा है...साहित्य का! यह नशा है...साधना का! यह नशा है... रचना-कर्म का!...'' ऊपर वाले रचनाकार ने इसे रचा ही इस काम के लिए है.
भैरूँलाल गर्ग उन्हें अपना ‘अभिन्न मित्र और सहचर’ मानते हैं. उनका कहना है कि बाल साहित्य रचनाकार और समीक्षा की गहरी समझ वाले, प्रतिभासंपन्न प्रकाश मनु का ‘बालवाटिका’ से परामर्शदाता के रूप में जुड़ना पत्रिका के लिए, बाल साहित्य के उन्नयन और बालपाठकों के साथ-साथ स्वयं उनके लिए भी एक सुखद अनुभव है. सूर्यनाथ सिंह की दृष्टि में ‘प्रकाश मनु एक सतत बहता सोता’ हैं. वे उन्हें पूर्णकालिक रचनाकार कहते हुए बताते हैं कि किताबें ही जिनका ओढ़ना-बिछौना हैं. वह बस, साहित्य में ही रमने वाले हैं. उनमें रचनात्मकता सतत बहती रहती है. साहित्य के अलावा शायद वे और कुछ सोचते ही नहीं. समाज की सेवा भी उन्हें साहित्य के जरिए ही संभव जान पड़ती है. सोना शर्मा को प्रकाश मनु की ‘संवेदना की गंगा-जमुनी लहरें’ भिगोती हैं. उनके अनुसार, वे एक ओर ज्ञान का हिमालय हैं तो दूसरी ओर कोमल भावनाओं की गंगा-जमुना. बाल उपन्यासकार विनायक, प्रकाश मनु को ‘बाल साहित्य का चमत्कारिक कलमकार’ कहते हैं, जो हृदय से संत है. उनके साहित्यिक अवदान पर उनकी टिप्पणी अत्यंत सटीक है, ''प्रकाश मनु शिखर पर पहुँचकर उसे कुछ और ऊँचा कर देते हैं. उनके शिखर नापने की न नपनी है और न नपना.''
चंद्रमोहन उपाध्याय अपने स्कूल के सहपाठी को बड़ी शिद्दत से याद करते हुए कहते हैं, प्रकाश मनु ‘मेरे बाल-सखा’ हैं, आज साहित्य में जिनके उपलब्धिपूर्ण कार्यों से सभी बालसखाओं का मस्तक गर्व से ऊँचा हुआ है. प्रकाश मनु के बचपन के एक और करीबी दोस्त आनंद विश्वास पुराने दिनों को याद करते हुए, बड़ी गहरी कसक के साथ कहते हैं कि ‘माँ का लाड़ला चंदर कहीं गुम हो गया...!’ और उसकी जगह प्रकाश मनु ने ले ली, जिसे साहित्य जगत् ने हाथोंहाथ लिया. विद्रोही कवि के मन की आग ने कवि को झुलसाया तो नहीं, अपितु समाज और साहित्य जगत को प्रकाशित तो अवश्य कर दिया.
सुरेश्वर त्रिपाठी का यह मानना है कि प्रकाश मनु बोलने के बजाय ‘विनम्रता और कलम से जवाब देने वाले लेखक’ हैं. वे किसी को प्रभावित करने या उपकृत करने के लिए नहीं लिखते, बल्कि पूरी हिम्मत से अपनी बात कहने के लिए लिखते हैं. लिहाजा अपने दुःसाहस से वे कई महत्त्वपूर्ण लोगों को नाराज भी कर लेते हैं. वे ऐसे लेखक हैं, ‘जो जवाब देते नहीं, जवाब बन जाते हैं’. सुधांशु गुप्त न सिर्फ दिल्ली प्रेस में प्रकाश मनु के साथ काम करने वाले सहकर्मी थे, वरन् साहित्य की दीवानगी के कारण उनके परम मित्र भी हैं, जिनके साथ उनका आत्मीय रिश्ता बनता गया. प्रेमपाल शर्मा ने ‘साहित्य अमृत’ के संयुक्त संपादक बनकर आए प्रकाश मनु की कुछ ऐसी खूबियों का वर्णन किया है, जो किसी भी संपादक को आर्दश संपादक की श्रेणी में ला खड़ा करती हैं. सुधा गुप्ता अमृता की अत्यंत सटीक टिप्पणी है कि ‘मनु जहाँ बैठकर लिखता है, वह जगह सम्मानित होती है!’ अशोक बैरागी ने ‘कुक्कू के घर की तीर्थ-यात्रा’ का बड़ा ही विरल अनुभव अपने भावपूर्ण संस्मरण में शब्द-बद्ध किया है. इसी संस्मरण में उनसे बतकही के दौरान प्रकाश मनु ने अनायास ही बाल साहित्य को परिभाषित किया है, ''बच्चों के लिए पहली चीज तो आपका मन और भावना है. आप बच्चे को देखते कैसे हैं? और उसके बारे में आपकी सोच कैसी है?...बच्चों के साथ बिल्कुल बच्चा बनना पड़ेगा.''
जाकिर अली ‘रजनीश’ प्रकाश मनु को ‘बड़े दिलवाले सहृदय रचनाकार’ मानते हैं, जो दूसरों को सदा प्रोत्साहित करते हैं. प्रदीप शुक्ल उनके हृदय की सरलता से प्रभावित हैं. पुणे के एक महाविद्यालय की हिंदी विभागाध्यक्ष सविता सिंह उन्हें ‘आग और रोशनी का लेखक’ मानती हैं. ‘अभिनव बालमन’ पत्रिका के संपादक निश्चल ने अपने लंबे संस्मरण में प्रकाश मनु के साथ अपनी यादगार मुलाकात को सबके साथ साझा किया है. वे प्रकाश मनु \ के इस विचार से अत्यंत प्रभावित हुए कि, ''मैं सृजन को ईश्वर मानता हूँ, इसके अलावा मैं ईश्वर को तलाश करने नहीं जाता. मेरी किसी तीर्थस्थान में आस्था नहीं है. मेरी मनुष्य में आस्था है. जब एक मनुष्य विचलित होकर दूसरे मनुष्य के दुःख को दूर करने निकलता है, तो उसमें मुझे ईश्वर नजर आता है....'' प्रभाकिरण जैन की दृष्टि में ‘नीम के छतनार पेड़ हैं प्रकाश मनु’. वेदमित्र शुक्ल ने अपने संस्मरण में लिखा है कि उन्होंने संस्मरण लेखन के गुर प्रकाश मनु से सीखे हैं. शैलेंद्र चौहान मानते हैं कि प्रकाश मनु का व्यक्तित्व ‘कुछ बहका-बहका, कुछ महका-महका वसंत का कोई झोंका’ है.
युवा बाल कथाकार और फिल्म-निर्माता रमाशंकर ने अपने संस्मरण में बहुत भावपूर्ण शब्दों में लिखा है कि बहुमुखी व्यक्तित्व के धनी साहित्यकार प्रकाश मनु को पाना अनोखे गर्व का अनुभव कराता है. रेनू चौहान को भी प्रकाश मनु के रूप में सदा ‘एक मुसकराता चेहरा’ दिखाई देता है, जो अपने खुशनुमा अंदाज में सबकी मदद करने को तैयार, सबको उम्दा-उम्दा सलाह देने को तत्पर रहता है. मंजरी शुक्ल भी यह स्वीकार करती हैं कि हमारी पीढ़ी ने प्रकाश मनु से बहुत कुछ सीखा है. इसके अलावा प्रकाश मनु की बेटी अपर्णा मनु और दामाद अमन जोशी के भी बहुत प्यारे संस्मरण हैं, जिनमें उन्होंने अपने पापा की सहजता, निर्मलता और सहिष्णुता आदि गुणों की प्रशंसा की है.
तीसरा खंड ‘संवाद अनायास’ है, जिसमें डॉ. सुनीता मनु से श्याम सुशील की अनौपचारिक बातचीत है. सहृदय लेखिका ने इस आत्मीय बातचीत में अपने पूरे हृदय को उड़ेलकर रख दिया है. उन्होंने प्रकाश मनु के साथ अपनी पहली मुलाकात, प्रेम-विवाह, जीवन में आई आर्थिक मुश्किलें, बेरोजगारी आदि सबका लेखा-जोखा दिया है. प्रकाश मनु के सरल और संतोषी स्वभाव ने उन्हें आर्थिक तंगी में भी संतुष्ट रहना सिखा दिया था. दोनों के आपसी प्रेम और गहरी समझ ने कभी परिवार को टूटने नहीं दिया. इस इंटरव्यू में प्रकाश मनु के व्यक्तित्व के साथ, उनकी पूरी साहित्यिक यात्रा का सिलसिलेवार वर्णन है.
दूसरे इंटरव्यू में पत्रिका के संपादक अनामीशरण ने प्रकाश मनु से खुलकर बातचीत की है, जो मुख्य रूप से बाल साहित्य के इतिहास पर केंद्रित है. इस अनौपचारिक बातचीत में प्रकाश मनु ने बताया कि उन्होंने इस चुनौती भरे कार्य का कैसे और किस आत्मिक संकल्प के साथ आरंभ किया और फिर एक जुनून की हद तक इसमें जिंदगी के बीस वर्ष लगा दिए. इस बीच किन-किन परीक्षाओं से गुजरना पड़ा, आर्थिक तंगी, शारीरिक व्याधियाँ और बहुत सी और भी मुश्किलें. लेकिन इस कठिन यात्रा का अंत सुखद हुआ, क्योंकि यह कार्य विधिवत संपन्न हो गया. प्रकाश मनु बहुत विनम्र शब्दों में कहते हैं कि मैं बहुत खुश हूँ और अपने प्यारे मित्रों का शुक्रगुजार हूँ जिनका स्नेह संबल मेरे लिए पाथेय बन गया. वे कृतज्ञता में भरकर सभी को धन्यवाद देते हुए कहते हैं, "सच पूछिए तो यह इतिहास-ग्रंथ मेरी सृष्टि नहीं, हम सभी के साझे उद्यम का फल है, और आज यह मेरे हाथों से निकलकर समूचे हिंदी बाल साहित्य की अनमोल निधि बन चुका है.
‘सृजन मूल्यांकन’ के इस बृहत् विशेषांक का ‘रचना-खंड’ भी कम आकर्षित नहीं करता. इसमें प्रकाश मनु के बहुमुखी लेखन की कुछ बानगियाँ हैं. इस खंड में प्रकाश मनु का ‘आत्मकथ्य’ भी शामिल है, जिसमें उन्होंने माँ, पिता जी, श्याम भैया और अपने अध्यापकों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित की है, जिन्होंने उनके व्यक्तित्व को आकार दिया. साथ ही प्रकाश मनु की चर्चित कहानी ‘असहमति’ और उनकी उनकी छह प्रिय कविताएँ भी दी गई हैं. अंत में दो परिशिष्ट भी हैं. इनमें प्रकाश मनु का काल-क्रमानुसार जीवन-परिचय और अब तक प्रकाशित पुस्तकों की विस्तृत सूची है.
पूरी पत्रिका पर दृष्टिपात करें तो हम देख सकते हैं कि कुछ बातें शब्दभेद से हर लेख और संस्मरण में उभरकर आई हैं. जैसे, प्रकाश मनु केवल सृजनात्मक व्यक्तित्व के मालिक ही नहीं हैं, बल्कि एक सजग, सक्रिय नागरिक भी हैं. विद्यार्थी जीवन हो या नौकरी, उन्होंने हमेशा दमन और शोषण के विरुद्ध आवाज उठाई है. वे अपने आप में एक आंदोलन हैं. आक्रोश और भाव-विस्फोट उनके व्यक्तित्व का कोई स्थायी भाव नहीं, जो देर तक टिका रहे. इससे कुछ देर के लिए वे भले ही असहज हो जाएँ, पर फिर शीघ्र ही सहज हो जाते हैं. लेकिन यह भी सच है कि वे हमें मूकदर्शक नहीं बना रहने देते. हमें जड़ता से निकलकर, आवाज उठाने को प्रेरित करते हैं.
प्रकाश मनु के जीवन और साहित्य के साथ-साथ सभी रचनाकारों ने अपने और उनके अत्यंत आत्मीय और सदा बने रहने वाले मधुर संबंधों का उल्लेख भी किया है. उनकी बालसुलभ निश्छल हँसी ने सबको लुभाया है. व्यक्तित्व की इन खूबियों के साथ प्रकाश मनु के विविध विधाओं के बहुआयामी लेखन और उनकी अकूत देन को भी सबने सराहा है. सबका मानना है कि उनका लेखन अपनी उपस्थिति दर्ज कराता है. वे अच्छे कवि होने के साथ एक सशक्त गद्यकार भी हैं. वे किस्सागोई के कथाकार हैं. अपनी कहानियों और उपन्यासों में कथ्य को मार्मिकता से प्रस्तुत करना प्रकाश मनु की संवेदनात्मक सफलता का प्रमाण है. उनके यहाँ कथ्य की विविधता एवं भाषा की गतिशीलता पाठकों को बाँधती हैं. कहना मुश्किल है कि उपन्यास उनमें रचे-बसे हैं या वे उपन्यासों में. पढ़ते वक्त पाठक का जुड़ाव उपन्यास के पात्रों के साथ होता है या प्रकाश मनु के साथ, यह पता नहीं चलता. प्रकाश मनु बतियाते जाते हैं और बस पाठक बहता जाता है. उनके उपन्यासों से गुजरते हुए लगता है कि उनका देखा और भोगा हुआ सच प्रकट हुआ है. परस्पर राग-द्वेष, गला-काट कलुषित राजनीति को अनावृत करते ये उपन्यास हमारे अनुभवों का विस्तार करने के साथ ही संवेदित करते हैं.
आज के भूमंडलीकरण और बाजारवादी दौर में, जहाँ सब कुछ अर्थकेंद्रित होता जा रहा है, वहाँ अपनी शर्तों पर जीने वाले प्रकाश मनु ने कोई जोड़-तोड़ नहीं की और न कोई समझौता. पद, पैसा, प्रतिष्ठा और पुरस्कार की लालसा मन के किसी भी कोने में नहीं रखी. फिर भी ऊपर वाले ने उनकी झोली को लेखन और गहन अध्ययन के कीमती तोहफे से भर दिया है. अपने साथ-साथ हजारों लोगों के सुख-दुख, प्रेम और संवेदना का एक पूरा समंदर उनकी आत्मा में है. उसमें वे लगातार गोता लगाते हैं और अनगिनत बेशकीमती रचनाओं के मोती बाहर निकाल लाते हैं. उन्हें वे अपने पाठकों को खुले दिल से बाँटते हैं. उनकी इस दरियादिली की जितनी तारीफ करें, कम है.
***
पत्रिका: सृजन-मूल्यांकन, प्रकाश मनु विशेषांक
संपादक: अनामीशरण बबल / स्वामी शरण
अतिथि संपादक: श्याम सुशील
प्रकाशन: ए-3/154-एच, मयूर विहार, फेज-3, दिल्ली-110096
मूल्यः 100/- रुपए मात्र
पृष्ठ: 352
#सृजन-मूल्यांकन पत्रिका के प्रकाश मनु विशेषांक की यह समीक्षा चर्चित लेखिका डॉ. शकुंतला कालरा ने की है. उनसे 9958455392 पर संपर्क किया जा सकता है.
इसके बाद ‘अतिथि संपादक की कलम से’ लिखा गया बड़ा ही सुंदर और आत्मीय संपादकीय श्याम सुशील का है. इस महत्त्वपूर्ण संपादकीय की शुरुआत श्याम सुशील ने प्रकाश मनु की एक अत्यंत मार्मिक कविता से की है, जो उन्होंने अपने चालीसवें जन्मदिन पर लिखी थी. कविता के साक्ष्य से कहें तो उन्हें उस दुनिया से शिकायत है, जिसने उन्हें तिल भर भी ममतालु जगह नहीं दी. उम्र के वे चालीस वर्ष जैसे खोटे सिक्कों की तरह व्यर्थ ही बीत गए-
एक-एक कर खोटे सिक्कों की तरह उछालते
एक-एक साल
मैंने बिता ही लिए आखिर अपनी उम्र के
चालीस साल...
चालीस खोखले साल इस दुनिया में जिसमें
नहीं तिल भर ममतालु जगह मेरे लिए
नहीं कंधे पर कोई हाथ
सामने कोई पगडंडी... रास्ता...!
सुशील का मानना है कि यह ‘तिल भर ममतालु जगह’ प्रकाश मनु ने अपने सार्थक जीवन और लेखन के माध्यम से हासिल करने की कोशिश की. उनके मन में ‘चालीस खोखले साल’ खोने का गम नहीं, वरन् जो पाया है, वह सबसे बड़ी कामयाबी है और प्रकाश मनु के लिए कामयाबी का अर्थ कुछ पाना नहीं, कुछ कर गुजरना है.
पूरी पत्रिका को विषयानुसार चार खंडों में बाँटा गया है. पहले खंड ‘शब्द और सतरों के बीच’ में प्रकाश मनु के व्यक्तित्व और कृतित्व से जुड़े चौबीस आलेख हैं. दूसरा खंड ‘यह जो प्रकाश मनु है’ मुख्य रूप से संस्मरण खंड है, जिसमें बत्तीस दिग्गज साहित्यकारों, मित्रों एवं स्नेही परिवारी जनों के संस्मरण हैं. ‘संवाद अनायास’ में डॉ सुनीता मनु के साथ श्याम सुशील की और प्रकाश मनु के साथ अनामीशरण की अंतरंग बातचीत है, जिसमें प्रकाश मनु के व्यक्तित्व के बहुत से अनदेखे, अनछुए पहलुओं से पाठक रू-ब-रू होता है. चौथा ‘रचना खंड’ है, जिसमें प्रकाश मनु के ‘आत्मकथ्य’ के अलावा उनकी कुछ चुनिंदा रचनाएँ भी हैं.
पत्रिका का प्रारंभ बालस्वरूप राही की कविता ‘मानसरोवर के हंस’ से होता है जिसमें उनकी शुभकामनाएं हैं कि प्रकाश मनु की रचनाएं निरंतर साहित्य-जगत में जगमगाती रहें. दूसरा आलेख ‘धूसर उजालों में निखरता एक व्यक्तित्व’ है, जिसमें लेखिका कानन झींगन ने उनके जादुई व्यक्तित्व और कृतित्व के विविध पहलुओं की चर्चा करते हुए, उनके बाल साहित्य के इतिहासकार रूप को उनके जीवन का सबसे बड़ा सारस्वत प्रयास कहा है. डॉ. शेरजंग गर्ग के अनुसार प्रकाश मनु ‘कविमना’ और ‘साहित्यमुग्ध’ वह हस्ती हैं, जिनमें कठिन परिस्थितियों में भी हिम्मत न हारने का अनूठा हौसला है. वे बाल साहित्यकार, विशेष रूप से बालकवि मनु की कविताओं पर मुग्ध हैं. उनका मानना है कि एक जीवंत भाषा, लयात्मक शैली और बालसुलभ सरलता के कारण प्रकाश मनु की बालकविताएं अत्यंत श्रेष्ठ हो गई हैं.
डॉ. शकुंतला कालरा अपने आलेख ‘सृजन, आलोचना और इतिहास लेखन की त्रिवेणी’ में प्रकाश मनु के इन तीनों रूपों से पाठकों को रू-ब-रू कराती हैं. उनकी दृष्टि में डॉ. प्रकाश मनु के सभी रूप महत्त्वपूर्ण हैं, लेकिन सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण उनके बाल साहित्य के इतिहासकार का रूप है. तीनों रूपों में महारथ हासिल करने वाले डॉ. प्रकाश मनु की लेखनी हर दिशा में समान रूप से निरंतर सक्रिय है. आरती स्मित ‘बाल-सखा प्रकाश मनु के रचना-वैविध्य’ को विवेचित और विश्लेषित करती हुई उन्हें एक समर्पित साहित्यकार, बेहतर रचनाकार, बेहतर पत्रकार, उत्कृष्ट समीक्षक और श्रेष्ठ आलोचक के रूप में तो प्रतिष्ठित करती ही हैं, साथ ही, इन सबसे ऊपर वे उन्हें एक संवेदनशील, विवेकी, सहयोगी, सरल और सच्चा व्यक्ति मानती हैं, जिनकी छाप उनकी कृतियों में दिखाई देती है.
मो. अरशद खान उन्हें ‘उजली हँसी के कथाकार’ मानते हैं तो मंजुरानी जैन अपने आलेख ‘प्रकाश मनु जी और उनका विपुल सृजन’ में उनकी भूरि-भूरि प्रशंसा करती हैं, जिसने पाठकों का दिल मोहा है. भगवतीप्रसाद गौतम ने सृजनशीलता की दृष्टि से उनके कद को बहुत बड़ा कहा है तो मो. साजिद खान उनकी किस्सागोई पर मुग्ध हैं. उनकी दृष्टि में प्रकाश मनु बाल साहित्य के बेजोड़ कथाकार हैं. गिरिराजशरण अग्रवाल और पिंकी बिड़ला उनके नाटकों पर मुग्ध हैं. उनका मानना है कि प्रकाश मनु ऐसे नाट्य-लेखक हैं, जिनके नाटक ‘बालकों में आशा की ज्योति’ जगाते हैं. ‘उपन्यासों में संवेदना और शिल्प की नव्यता’ आलेख में शिवरानी ने उन्हें सफल कथाशिल्पी माना है और उनके तीन प्रसिद्ध उपन्यासों ‘यह जो दिल्ली है’, ‘कथा सर्कस’ और ‘पापा के जाने के बाद’ की चर्चा करते हुए आम आदमी के दर्द, पीड़ा और संघर्ष को उनके उपन्यासों की मूल विशेषता माना है.
प्रकाश मनु के गृहनगर शिकोहाबाद के ही चर्चित व्यंग्यकार अरविंद तिवारी ने उनके विद्रोही स्वभाव की प्रबलता का उल्लेख किया है, जब उन्होंने खिड़कियों के पट लगवाने के लिए अपनी क्लास में ही, ठीक ब्लैकबोर्ड के नीचे बैठकर धरना शुरू कर दिया था. अंततः कॉलेज के प्रबंधन को खिड़कियों में पट लगवाने पड़े. रमेशकुमार सिंह की दृष्टि में प्रकाश मनु बाल साहित्य के प्रकाश-स्तंभ और चलते-फिरते विश्वकोश हैं, तो शिवचरण सरोहा उन्हें ‘बाल साहित्य का सूर्य’ मानते हैं. जिज्ञासा आर. सीतापरा ने उन्हें बाल साहित्य का सिद्धहस्त लेखक कहा है. अखिलेश श्रीवास्तव ‘चमन’ ने उन्हें ‘हिंदी बाल साहित्य का एक मौन साधक’ कहा है, जो अपनी सरलता, सज्जनता, विनम्रता और कर्मठता से किसी भी अपरिचित को पहली ही मुलाकात में मुरीद बना लेते हैं. प्रह्लाद श्रीमाली उनके कहानी जगत् के अनूठेपन से प्रभावित होकर कहते हैं, ‘बच्चों में अनायास संस्कार चेतना पैदा करती हैं उनकी कहानियाँ’. अपनी बाल कहानियों में वे ऐसी स्थिति-परिस्थिति बुनते हैं, जिनके आधार पर बच्चों के भीतर मानवीय मूल्यों के लिए चेतना उत्पन्न हो. वे उपदेश नहीं देते, हालाँकि उनकी कहानियों में छिपा हुआ संदेश स्वतः ही बच्चों के मन में उतरता चला जाता है. अश्वनीकुमार पाठक और फहीम अहमद ने उनकी कविताओं में कुछ अलग ही तासीर पाई है. शोध-छात्रा कमलजीत कौर का निष्कर्ष है कि प्रकाश मनु का साहित्य केवल कल्पना के पंखों पर ही नहीं उड़ता, बल्कि धरातल की भी बात करता है. वघाडिया हिना ने प्रकाश मनु के बाल उपन्यास ‘गोलू भागा घर से’ के इस संदेश को सामने रखा है कि माता-पिता को चाहिए, वे बच्चों के मन में चल रही भावनाओं की आँधी और गहरी उधेड़बुन को समझें, वरना ऐसे गोलू पैदा होते रहेंगे और घर से भागते रहेंगे.
पत्रिका का दूसरा खंड संस्मरणों की सुगंध लिए है. ‘प्रकाश मनु आत्मीयता का स्पंदन’ हैं- ये हृदय उद्गार हैं प्रतिष्ठित कवि और कथाकार रामदरश मिश्र के. इस संस्मरण में उनकी पहली मुलाकात से लेकर अब तक की ढेरों मधुर और प्यारी स्मृतियाँ अंकित हैं. उन्होंने कहा है कि प्रकाश मनु ने सत्यार्थी जी और शैलेश मटियानी जी पर बहुत मन से लिखा-लिखाया है, वरना साहित्य के परिदृश्य से वे विलुप्त कर दिए गए थे. प्रकाश मनु के अंतरंग मित्र और प्रसिद्ध चित्रकार हरिपाल त्यागी ने ‘मेरे मित्र और एक आत्मीय शख्सियत’ लेख में बहुत भावनात्मक लहजे में उन्हें याद किया है. उनका मानना है कि इतना विपुल साहित्य-सृजन करने वाले प्रकाश मनु स्वयं में एक संस्था हैं। प्रकाश मनु के वरिष्ठ सहकर्मी एवं घनिष्ठ मित्र देवेंद्र कुमार की यह धारणा उन्हें पहली बार ‘नंदन’ कार्यालय में देखते ही बन गई थी कि यह ‘आदमी कुछ अलग सा’ है. इसी प्रकार रमेश तैलंग ने भी अपने संस्मरण में उन्हें हिंदुस्तान टाइम्स में काम करते हुए ‘एक धुनी और गुनी साहित्यकार’ के रूप में याद किया है. विगत पच्चीस वर्षों के अपने साथ में प्रकाश मनु में आए सकारात्मक परिवर्तन का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा है कि ज्यों-ज्यों मनु का रचनात्मक कद बढ़ा है, उनकी अंदर की विध्वंसात्मक ऊर्जा शांत होती गई. उनका कहना है कि मनु की रचनात्मक ऊर्जा के पीछे उनकी लेखिका पत्नी डॉ. सुनीता की सतत शक्ति रही हैं.
सत्तर साल की उम्र में भी ‘प्रकाश मनु में एक बच्चा हमेशा रहता है’. यह अनुभव इस संस्मरण के लेखक वल्लभ सिद्धार्थ के साथ-साथ उन्हें मिलने वाले सभी मित्रों का है. ‘कवि भाई के साथ कुरुक्षेत्र के वे दिन’ में प्रकाश मनु के गर्दिश के दिनों के साथी और निकटस्थ मित्र ब्रजेश कृष्ण बहुत सारी कही-अनकही घटनाओं को याद करते हैं, जो उनकी स्मृति में चित्र की तरह अंकित हैं. प्रकाश मनु उन दिनों ‘रुद्र’ उपनाम से कविताएँ लिखते थे, और उनमें अपने इस नाम के अनुरूप खौलता हुआ गुस्सा रहता था. ब्रजेश भाई स्वीकार करते हैं, कि यही कविताएँ उन्हें प्रकाश मनु के नजदीक ले आईं. प्रकाश का कुरुक्षेत्र में आना वे अपने लिए वरदान मानते हैं. अपने इस संस्मरण में उन्होंने प्रकाश मनु से उनके शोध-निर्देशक हिंदी विभाग के अध्यक्ष रामेश्वरलाल खंडेलवाल ‘तरुण’ की नाराजगी का भी जिक्र किया है, जिसकी प्रकाश मनु को आगे चलकर काफी कीमत चुकानी पड़ी. दिविक रमेश ने प्रकाश मनु को ‘सतत परिश्रम और संकल्प की सच्ची प्रतिमूर्ति’ कहा है और अपने संस्मरण में उनके बहुआयामी सृजन को मूल्यांकित करते हुए उनके बाल साहित्य के प्रति योगदान को अविस्मरणीय माना है.
महाबीर सरवर ने प्रकाश मनु और डॉ सुनीता मनु से जुड़ी अनेक पारिवारिक सुखद स्मृतियों की चर्चा करते हुए, प्रकाश मनु की रचनाशीलता की प्रशंसा की है. वे आज के मनु को पूर्णतः साहित्य-सृजन के लिए समर्पित, संयत और दंभहीन शख्सियत के रूप में देखते हैं जो एक तपस्वी के एकांत में रहते हुए सतत रचनाशील हैं. योगेंद्रदत्त शर्मा की दृष्टि में ‘साहित्य के लिए ऐसी मस्ती और दीवानापन.....!’ मनु के अतिरिक्त और कहाँ हो सकता है? वे बेमिसाल नगीना हैं. उनके विषय में वे लिखते हैं, ''सम्मान-पुरस्कार की जुगत, जुगाड़, जोड़-तोड़, मारामारी और गलाकाट प्रतियोगिता के इस दौर में यह किस प्रजाति का जीव है, जो सारी चमक-दमक और चकाचौंध से पीठ फेरकर खड़ा हुआ है. न सिर्फ खड़ा है, बल्कि तनकर खड़ा है और अपनी फक्कड़ मस्ती में झूम भी रहा है. ऐसा इसलिए कि उसने नशा कर रखा है. यह नशा है...साहित्य का! यह नशा है...साधना का! यह नशा है... रचना-कर्म का!...'' ऊपर वाले रचनाकार ने इसे रचा ही इस काम के लिए है.
भैरूँलाल गर्ग उन्हें अपना ‘अभिन्न मित्र और सहचर’ मानते हैं. उनका कहना है कि बाल साहित्य रचनाकार और समीक्षा की गहरी समझ वाले, प्रतिभासंपन्न प्रकाश मनु का ‘बालवाटिका’ से परामर्शदाता के रूप में जुड़ना पत्रिका के लिए, बाल साहित्य के उन्नयन और बालपाठकों के साथ-साथ स्वयं उनके लिए भी एक सुखद अनुभव है. सूर्यनाथ सिंह की दृष्टि में ‘प्रकाश मनु एक सतत बहता सोता’ हैं. वे उन्हें पूर्णकालिक रचनाकार कहते हुए बताते हैं कि किताबें ही जिनका ओढ़ना-बिछौना हैं. वह बस, साहित्य में ही रमने वाले हैं. उनमें रचनात्मकता सतत बहती रहती है. साहित्य के अलावा शायद वे और कुछ सोचते ही नहीं. समाज की सेवा भी उन्हें साहित्य के जरिए ही संभव जान पड़ती है. सोना शर्मा को प्रकाश मनु की ‘संवेदना की गंगा-जमुनी लहरें’ भिगोती हैं. उनके अनुसार, वे एक ओर ज्ञान का हिमालय हैं तो दूसरी ओर कोमल भावनाओं की गंगा-जमुना. बाल उपन्यासकार विनायक, प्रकाश मनु को ‘बाल साहित्य का चमत्कारिक कलमकार’ कहते हैं, जो हृदय से संत है. उनके साहित्यिक अवदान पर उनकी टिप्पणी अत्यंत सटीक है, ''प्रकाश मनु शिखर पर पहुँचकर उसे कुछ और ऊँचा कर देते हैं. उनके शिखर नापने की न नपनी है और न नपना.''
चंद्रमोहन उपाध्याय अपने स्कूल के सहपाठी को बड़ी शिद्दत से याद करते हुए कहते हैं, प्रकाश मनु ‘मेरे बाल-सखा’ हैं, आज साहित्य में जिनके उपलब्धिपूर्ण कार्यों से सभी बालसखाओं का मस्तक गर्व से ऊँचा हुआ है. प्रकाश मनु के बचपन के एक और करीबी दोस्त आनंद विश्वास पुराने दिनों को याद करते हुए, बड़ी गहरी कसक के साथ कहते हैं कि ‘माँ का लाड़ला चंदर कहीं गुम हो गया...!’ और उसकी जगह प्रकाश मनु ने ले ली, जिसे साहित्य जगत् ने हाथोंहाथ लिया. विद्रोही कवि के मन की आग ने कवि को झुलसाया तो नहीं, अपितु समाज और साहित्य जगत को प्रकाशित तो अवश्य कर दिया.
सुरेश्वर त्रिपाठी का यह मानना है कि प्रकाश मनु बोलने के बजाय ‘विनम्रता और कलम से जवाब देने वाले लेखक’ हैं. वे किसी को प्रभावित करने या उपकृत करने के लिए नहीं लिखते, बल्कि पूरी हिम्मत से अपनी बात कहने के लिए लिखते हैं. लिहाजा अपने दुःसाहस से वे कई महत्त्वपूर्ण लोगों को नाराज भी कर लेते हैं. वे ऐसे लेखक हैं, ‘जो जवाब देते नहीं, जवाब बन जाते हैं’. सुधांशु गुप्त न सिर्फ दिल्ली प्रेस में प्रकाश मनु के साथ काम करने वाले सहकर्मी थे, वरन् साहित्य की दीवानगी के कारण उनके परम मित्र भी हैं, जिनके साथ उनका आत्मीय रिश्ता बनता गया. प्रेमपाल शर्मा ने ‘साहित्य अमृत’ के संयुक्त संपादक बनकर आए प्रकाश मनु की कुछ ऐसी खूबियों का वर्णन किया है, जो किसी भी संपादक को आर्दश संपादक की श्रेणी में ला खड़ा करती हैं. सुधा गुप्ता अमृता की अत्यंत सटीक टिप्पणी है कि ‘मनु जहाँ बैठकर लिखता है, वह जगह सम्मानित होती है!’ अशोक बैरागी ने ‘कुक्कू के घर की तीर्थ-यात्रा’ का बड़ा ही विरल अनुभव अपने भावपूर्ण संस्मरण में शब्द-बद्ध किया है. इसी संस्मरण में उनसे बतकही के दौरान प्रकाश मनु ने अनायास ही बाल साहित्य को परिभाषित किया है, ''बच्चों के लिए पहली चीज तो आपका मन और भावना है. आप बच्चे को देखते कैसे हैं? और उसके बारे में आपकी सोच कैसी है?...बच्चों के साथ बिल्कुल बच्चा बनना पड़ेगा.''
जाकिर अली ‘रजनीश’ प्रकाश मनु को ‘बड़े दिलवाले सहृदय रचनाकार’ मानते हैं, जो दूसरों को सदा प्रोत्साहित करते हैं. प्रदीप शुक्ल उनके हृदय की सरलता से प्रभावित हैं. पुणे के एक महाविद्यालय की हिंदी विभागाध्यक्ष सविता सिंह उन्हें ‘आग और रोशनी का लेखक’ मानती हैं. ‘अभिनव बालमन’ पत्रिका के संपादक निश्चल ने अपने लंबे संस्मरण में प्रकाश मनु के साथ अपनी यादगार मुलाकात को सबके साथ साझा किया है. वे प्रकाश मनु \ के इस विचार से अत्यंत प्रभावित हुए कि, ''मैं सृजन को ईश्वर मानता हूँ, इसके अलावा मैं ईश्वर को तलाश करने नहीं जाता. मेरी किसी तीर्थस्थान में आस्था नहीं है. मेरी मनुष्य में आस्था है. जब एक मनुष्य विचलित होकर दूसरे मनुष्य के दुःख को दूर करने निकलता है, तो उसमें मुझे ईश्वर नजर आता है....'' प्रभाकिरण जैन की दृष्टि में ‘नीम के छतनार पेड़ हैं प्रकाश मनु’. वेदमित्र शुक्ल ने अपने संस्मरण में लिखा है कि उन्होंने संस्मरण लेखन के गुर प्रकाश मनु से सीखे हैं. शैलेंद्र चौहान मानते हैं कि प्रकाश मनु का व्यक्तित्व ‘कुछ बहका-बहका, कुछ महका-महका वसंत का कोई झोंका’ है.
युवा बाल कथाकार और फिल्म-निर्माता रमाशंकर ने अपने संस्मरण में बहुत भावपूर्ण शब्दों में लिखा है कि बहुमुखी व्यक्तित्व के धनी साहित्यकार प्रकाश मनु को पाना अनोखे गर्व का अनुभव कराता है. रेनू चौहान को भी प्रकाश मनु के रूप में सदा ‘एक मुसकराता चेहरा’ दिखाई देता है, जो अपने खुशनुमा अंदाज में सबकी मदद करने को तैयार, सबको उम्दा-उम्दा सलाह देने को तत्पर रहता है. मंजरी शुक्ल भी यह स्वीकार करती हैं कि हमारी पीढ़ी ने प्रकाश मनु से बहुत कुछ सीखा है. इसके अलावा प्रकाश मनु की बेटी अपर्णा मनु और दामाद अमन जोशी के भी बहुत प्यारे संस्मरण हैं, जिनमें उन्होंने अपने पापा की सहजता, निर्मलता और सहिष्णुता आदि गुणों की प्रशंसा की है.
तीसरा खंड ‘संवाद अनायास’ है, जिसमें डॉ. सुनीता मनु से श्याम सुशील की अनौपचारिक बातचीत है. सहृदय लेखिका ने इस आत्मीय बातचीत में अपने पूरे हृदय को उड़ेलकर रख दिया है. उन्होंने प्रकाश मनु के साथ अपनी पहली मुलाकात, प्रेम-विवाह, जीवन में आई आर्थिक मुश्किलें, बेरोजगारी आदि सबका लेखा-जोखा दिया है. प्रकाश मनु के सरल और संतोषी स्वभाव ने उन्हें आर्थिक तंगी में भी संतुष्ट रहना सिखा दिया था. दोनों के आपसी प्रेम और गहरी समझ ने कभी परिवार को टूटने नहीं दिया. इस इंटरव्यू में प्रकाश मनु के व्यक्तित्व के साथ, उनकी पूरी साहित्यिक यात्रा का सिलसिलेवार वर्णन है.
दूसरे इंटरव्यू में पत्रिका के संपादक अनामीशरण ने प्रकाश मनु से खुलकर बातचीत की है, जो मुख्य रूप से बाल साहित्य के इतिहास पर केंद्रित है. इस अनौपचारिक बातचीत में प्रकाश मनु ने बताया कि उन्होंने इस चुनौती भरे कार्य का कैसे और किस आत्मिक संकल्प के साथ आरंभ किया और फिर एक जुनून की हद तक इसमें जिंदगी के बीस वर्ष लगा दिए. इस बीच किन-किन परीक्षाओं से गुजरना पड़ा, आर्थिक तंगी, शारीरिक व्याधियाँ और बहुत सी और भी मुश्किलें. लेकिन इस कठिन यात्रा का अंत सुखद हुआ, क्योंकि यह कार्य विधिवत संपन्न हो गया. प्रकाश मनु बहुत विनम्र शब्दों में कहते हैं कि मैं बहुत खुश हूँ और अपने प्यारे मित्रों का शुक्रगुजार हूँ जिनका स्नेह संबल मेरे लिए पाथेय बन गया. वे कृतज्ञता में भरकर सभी को धन्यवाद देते हुए कहते हैं, "सच पूछिए तो यह इतिहास-ग्रंथ मेरी सृष्टि नहीं, हम सभी के साझे उद्यम का फल है, और आज यह मेरे हाथों से निकलकर समूचे हिंदी बाल साहित्य की अनमोल निधि बन चुका है.
‘सृजन मूल्यांकन’ के इस बृहत् विशेषांक का ‘रचना-खंड’ भी कम आकर्षित नहीं करता. इसमें प्रकाश मनु के बहुमुखी लेखन की कुछ बानगियाँ हैं. इस खंड में प्रकाश मनु का ‘आत्मकथ्य’ भी शामिल है, जिसमें उन्होंने माँ, पिता जी, श्याम भैया और अपने अध्यापकों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित की है, जिन्होंने उनके व्यक्तित्व को आकार दिया. साथ ही प्रकाश मनु की चर्चित कहानी ‘असहमति’ और उनकी उनकी छह प्रिय कविताएँ भी दी गई हैं. अंत में दो परिशिष्ट भी हैं. इनमें प्रकाश मनु का काल-क्रमानुसार जीवन-परिचय और अब तक प्रकाशित पुस्तकों की विस्तृत सूची है.
पूरी पत्रिका पर दृष्टिपात करें तो हम देख सकते हैं कि कुछ बातें शब्दभेद से हर लेख और संस्मरण में उभरकर आई हैं. जैसे, प्रकाश मनु केवल सृजनात्मक व्यक्तित्व के मालिक ही नहीं हैं, बल्कि एक सजग, सक्रिय नागरिक भी हैं. विद्यार्थी जीवन हो या नौकरी, उन्होंने हमेशा दमन और शोषण के विरुद्ध आवाज उठाई है. वे अपने आप में एक आंदोलन हैं. आक्रोश और भाव-विस्फोट उनके व्यक्तित्व का कोई स्थायी भाव नहीं, जो देर तक टिका रहे. इससे कुछ देर के लिए वे भले ही असहज हो जाएँ, पर फिर शीघ्र ही सहज हो जाते हैं. लेकिन यह भी सच है कि वे हमें मूकदर्शक नहीं बना रहने देते. हमें जड़ता से निकलकर, आवाज उठाने को प्रेरित करते हैं.
प्रकाश मनु के जीवन और साहित्य के साथ-साथ सभी रचनाकारों ने अपने और उनके अत्यंत आत्मीय और सदा बने रहने वाले मधुर संबंधों का उल्लेख भी किया है. उनकी बालसुलभ निश्छल हँसी ने सबको लुभाया है. व्यक्तित्व की इन खूबियों के साथ प्रकाश मनु के विविध विधाओं के बहुआयामी लेखन और उनकी अकूत देन को भी सबने सराहा है. सबका मानना है कि उनका लेखन अपनी उपस्थिति दर्ज कराता है. वे अच्छे कवि होने के साथ एक सशक्त गद्यकार भी हैं. वे किस्सागोई के कथाकार हैं. अपनी कहानियों और उपन्यासों में कथ्य को मार्मिकता से प्रस्तुत करना प्रकाश मनु की संवेदनात्मक सफलता का प्रमाण है. उनके यहाँ कथ्य की विविधता एवं भाषा की गतिशीलता पाठकों को बाँधती हैं. कहना मुश्किल है कि उपन्यास उनमें रचे-बसे हैं या वे उपन्यासों में. पढ़ते वक्त पाठक का जुड़ाव उपन्यास के पात्रों के साथ होता है या प्रकाश मनु के साथ, यह पता नहीं चलता. प्रकाश मनु बतियाते जाते हैं और बस पाठक बहता जाता है. उनके उपन्यासों से गुजरते हुए लगता है कि उनका देखा और भोगा हुआ सच प्रकट हुआ है. परस्पर राग-द्वेष, गला-काट कलुषित राजनीति को अनावृत करते ये उपन्यास हमारे अनुभवों का विस्तार करने के साथ ही संवेदित करते हैं.
आज के भूमंडलीकरण और बाजारवादी दौर में, जहाँ सब कुछ अर्थकेंद्रित होता जा रहा है, वहाँ अपनी शर्तों पर जीने वाले प्रकाश मनु ने कोई जोड़-तोड़ नहीं की और न कोई समझौता. पद, पैसा, प्रतिष्ठा और पुरस्कार की लालसा मन के किसी भी कोने में नहीं रखी. फिर भी ऊपर वाले ने उनकी झोली को लेखन और गहन अध्ययन के कीमती तोहफे से भर दिया है. अपने साथ-साथ हजारों लोगों के सुख-दुख, प्रेम और संवेदना का एक पूरा समंदर उनकी आत्मा में है. उसमें वे लगातार गोता लगाते हैं और अनगिनत बेशकीमती रचनाओं के मोती बाहर निकाल लाते हैं. उन्हें वे अपने पाठकों को खुले दिल से बाँटते हैं. उनकी इस दरियादिली की जितनी तारीफ करें, कम है.
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पत्रिका: सृजन-मूल्यांकन, प्रकाश मनु विशेषांक
संपादक: अनामीशरण बबल / स्वामी शरण
अतिथि संपादक: श्याम सुशील
प्रकाशन: ए-3/154-एच, मयूर विहार, फेज-3, दिल्ली-110096
मूल्यः 100/- रुपए मात्र
पृष्ठ: 352
#सृजन-मूल्यांकन पत्रिका के प्रकाश मनु विशेषांक की यह समीक्षा चर्चित लेखिका डॉ. शकुंतला कालरा ने की है. उनसे 9958455392 पर संपर्क किया जा सकता है.
( सौजन्य से : आज तक )
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