राम रहीम और रामपाल जैसे तथाकथित प्रसिद्ध संतों को ऑल इंडिया इंसानियत पार्टी की नेक सलाह है कि वे भोले भाले भक्त-समाज को हिंसात्मक न बनाएँ!

डेरा सच्चा सौदा के राम रहीम और कबीर पंथी बरवाला के श्री रामपाल जैसे प्रसिद्ध तथाकथित संतों को ऑल इंडिया इंसानियत पार्टी की नेक सलाह है कि वे भोले भाले भक्त-समाज को हिंसात्मक न बनाएँ क्योंकि सच्चा संत वही होता है जो स्वयं शांत रहता है और अपने भक्तों को भी शांत रखता है चाहे जीवन में कितनी ही मुसीबतें क्यों न आएँ!
जो व्यक्ति अपने भक्तों को हिंसा हेतु प्रेरित करता है और उन्हें मृत्यु के मुँह में धकेलता है वह  व्यक्ति एक उपदेशक कहलाने का अधिकारी अवश्य हो सकता है, परंतु एक सच्चा संत कहलाने का अधिकारी कभी भी नहीं!
यदि उपदेशक में शुक्राचार्य की भाँति अपने मृत शिष्यों को दोबारा जीवित करने की शक्ति हो तभी अपने शिष्यों को अन्याय के प्रतिरोध  हेतु हिंसात्मक होने दे; अन्यथा नहीं! परंतु, हमें तो आज कोई भी शुक्राचार्य जैसा शक्तिशाली गुरु नजर नहीं आता!
सच्चे संत को अपने ऊपर आए न टलने वाले संकट को प्रभु की इच्छा समझकर चुपचाप सहन कर लेना चाहिए।
उदाहरण के रूप में हमें गुरु नानक जी से सीख लेनी चाहिए जिन्होंने चुपचाप जेल की चककी पीसी, परंतु हिंसा नहीं की।
यीशु मसीह भी सूली झूल गए, परंतु हिंसा नहीं की।
वर्तमान में डाॅ स्वामी अप्रतिमानंदा जी भी अपने ऊपर भारत सरकार
के वित्त मंत्रालय और सावित्री बाई फुले पुणे विद्यापीठ द्वारा हुए अन्याय को दूर करने हेतु शांति का मार्ग अपनाए हुए हैं।
अन्याय के विरुद्ध संघर्ष अवश्य कीजिएगा, परंतु हिंसक न बनिएगा!
साथ ही तर्क का जवाब तर्क से ही दीजिएगा, न कि हिंसा से।
जैसे कि डाॅ स्वामी अप्रतिमानंदा जी ने कबीर पंथी बरवाला के श्री रामपाल द्वारा समाज को कुतर्कों के सहारे गुमराह करने की कुचेष्टा को अंग्रेज़ी भाषा में लिखे अपने विद्ववतापूर्ण लेखों के अकाटय सुतर्कों के बल पर फेल कर दिया है।
यदि  डाॅ स्वामी अप्रतिमानंदा जी के इन अंग्रेज़ी भाषा के लेखों को हिंदी भाषा में उपलब्ध करवाया जाए तो भक्त समाज को समझ में आ जाएगा कि कबीर पंथी बरवाला के श्री रामपाल (जो इस समय जेल में सजा काट रहे हैं) भोले भाले भक्त-समाज को कुतर्कों के सहारे गुमराह कर रहे थे...!
(फोटो: सौजन्य गूगल)

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