बहुत हो चुका है
कई जमाने
से अंधेरा,
रात को अब
मार लात
देखूँगी सवेरा!
देवी बना
सिंहासन पे बिठा
कैद न करो
मुझे मंदिरों में,
मर्दों की बनाई
मर्यादाओं की
गुलाम
जंजीरों में!
तुम्हें बनना है राम
बनना है अर्जुन
तुम्हीं बनो,
तुम्हें लड़ना है
मरना है तो
तुम्हीं लड़ो मरो!
मुझे नहीं बनना
द्रोपदी सती
सावित्री सीता,
अपने पास ही
रखो स्तुति
अपनी गीता!
करवा चौथ का व्रत
तुम्हारे लिए
मैं ही प्रिये क्यों करूँ!
तुम भी करो न
मेरे लिए
मैं ही क्यों भूखी रहूँ!
नहीं नाचना मुझे
सजधज बन
मर्दों की मधुशाला
में मधुबाला,
गम में पीते
हैं जाम मर्द
तो अब पियूँगी
मैं भी मधुप्याला!
इंसान हूँ मैं
मुझे इंसान
ही रहने दो,
बहता हुआ
दरिया हूँ मैं
मुझे बहने दो!
ख्वाहिशें हैं
मर्जी मुझे
करने दो,
इंद्रधनुष
बादलों पे
चढ़ने दो!
मैं कंप्युटर
मोबाइल की
आबाद दुनिया हूँ,
अपनी मर्जी
की मालिक
आजाद गुड़िया हूँ!
मसलो न मुझे
नाजुक कली हूँ
मुझे खिलने दो,
आँखें खोली हैं
अभी अभी
मुझे महकने दो..!
Lyrics by Ms. Sujata Kumari, (Editor-in-Chief, Aatmeeyataa Patrekaa)
सुश्री सुजाता कुमारी, सर्वोपरि संपादिका एवम् प्रभारी सम्पादकीय इकाई (आत्मीयता पत्रिका)
X - @sujatakumarika
(स्रोत: इंटरनेट, सोशल मीडिया, व्हाट्सएप्प, एक्स पर मुफ़्त में उपलब्ध छायाचित्र, चलचित्रिका और अन्य सामग्री)
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