क्या ये सच है "पंथ - निरपेक्ष" की परिभाषा के हिसाब से तथाकथित "हिंदू" पंथी केवल 10% और गैर हिंदू पंथी, दूसरे पंथों के लोग सबसे ज्यादा 90% हैं 🤔?

जानकारों के अनुसार "उदार सनातन धर्म" और तथाकथित "हिंदुत्व" बिल्कुल अलग अलग दो चीजे हैं। सच्चा ब्राहमणवाद की मूल जड़ें कहती हैं कि हर व्यक्ति में उसी एक ब्रह्म की ज्योति व्याप्त है, इसलिए हर पूजा पद्धति का सम्मान करो, हर पूजा पद्धति वाले व्यक्ति का भी पूरा सम्मान करो। सभी व्यक्ति और पूजा पद्धतियाँ उसी एक विशाल रूहानी पेड़ की शाखाएँ हैं जिस पेड़ को हम ईश्वर अल्लाह भगवान वाहे गुरु आदि अलग अलग नामों से जानते हैं। 

असल में हमारे वेदों ग्रन्थों में "हिंदू" नाम का कोई भी शब्द नहीं मिलता है।

भारत की विभिन्न पूजा पद्धतियों को अंग्रेज ठीक से समझ नहीं पाए। इसलिए अंग्रेजों ने भारतीय उपमहाद्वीप की सभी पूजा पद्धतियों को एक ही नाम "हिंदू धर्म" दे दिया। 

असल में, देवी/शक्ति की पूजा करने वालों को शाक्त, गणपति की पूजा करने वालों को गाणपत्य, गले में रुद्राक्ष माला पहनने और माथे पर त्रिपुंड भस्म लगाने वाले और शिव की पूजा करने वालों को शैव, गले में तुलसी की की माला पहनने और माथे पर चंदन का टीका लगाने वाले और विष्णु की पूजा करने वालों को वैष्णव, गले में सफेद जनेऊ पहनने और माथे पर तिलक लगाने वाले /अग्नि की पूजा/यज्ञ/हवन करने वाले और ब्रह्मा/ब्राह्म की पूजा करने वालों को ब्राह्मण कहते हैं। 

ब्राहमणों में भी दो धड़े हैं - पहला धड़ा वो जो उदारवादी हैं और सभी पूजा पद्धतियों/धर्मों/जातियों का सम्मान करते हैं, दूसरा धड़ा वो जो नागपुर में पैदा हुए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और उसके द्वारा पोषित बजरंग दल विश्व हिंदू परिषद के 'तथाकथित' धर्मांध/कट्टर जातिवाद/धर्म पर आधारित ब्राहमणवाद का अनुसरण करते हुए गैर ब्राहमणों को/उनकी पूजा पद्धतियों को अपने से छोटा/हीन/तुच्छ समझते हैं। 

पैगंबर मोहम्मद के रास्ते को मानने वालों को मुस्लिम कहते हैं, ईसा मसीह के रास्ते को मानने वालों को ईसाई कहते हैं, महात्मा बुद्ध के अनुयायियों को बौद्ध कहते हैं, गुरु नानक को मानने वालों को सिख कहते हैं, महावीर के अनुयायियों को जैन कहते हैं। 

वान/वनों/जंगलों में रह कर प्रकृति/आदिम की पूजा करने वालों को आदिवासी/दलित कहते हैं वगैरह वगैरह। 

भारत के संविधान में सभी धर्मों/जातियों को बराबरी का हक है। 

ब्राह्मणों के असर वाली आबादी भारत में 10℅ भी नहीं है। भारत की 90℅ आबादी आदिवासी/दलित, जैन, सिख,बौद्ध, मुस्लिम, राधा स्वामी और अन्य धर्मों/पूजा पद्धतियों की अनुयायी है।

आज किसी ऐसे मॉडर्न बुद्ध की जरूरत है जो सभी भारतीयों को प्यार मोहब्बत के धागे में बांध कर एक कर सके। जो लोग धर्म/जाति के नाम पर मुल्क को बांटने वाली सियासत कर रहे हैं, वो सही नहीं कर रहे हैं क्योंकि अध्यात्मिक पथ पर हम सभी भारतीय एक हैं। 

अगर "पंथ - निरपेक्ष" की परिभाषा के हिसाब से तथाकथित "हिंदू" पंथी केवल 10% और गैर हिंदू पंथी, दूसरे पंथों के लोग सबसे ज्यादा 90% हैं तो भारत कभी भी तथाकथित "हिंदू राष्ट्र" नहीं बन सकता। 

इसीलिए राहुल गाँधी और प्रियंका वाडरा ने 2024 के लोकसभा चुनावों में 90% आबादी वाले आदिवासी, दलित,शोषित, और गरीबों के हक को मुख्य मुद्दे बना दिया है। 

हमें हर किसी धर्म का सम्मान करना चाहिए।


जय जीव! 

जय इंसानियत! 

खुदा हाफिज! 

सत् श्री अकाल! 

राधा स्वामी! 

ओम नमो नारायण! 

आमिन! 

ओम तत् सत्! 

जय श्री राम!

जय सियाराम! 

सत्यमेव जयते! 

जय भारत! 


स्वामी मूर्खानंद जी


(स्रोत: सोशल मीडिया, व्हाट्सएप्प, इंटरनेट पर मुफ़्त में उपलब्ध छायाचित्र, चलचित्रका, साहित्य,सामग्री)


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