होली - कविता

लाखों लोग कभी भी 

स्वयं का विश्लेषण 

नहीं करते हैं,

झूठी दुनिया में

झूठे ख्वाबों में

जिते और मरते हैं...! 

 

मानसिक रूप से वे 

अपने पर्यावरण के 

कारखाने के 

यांत्रिक उत्पाद हैं 

जो नाश्ते में, 

दोपहर के भोजन 

और 

रात के 

खाने में व्यस्त हैं,

और 

काम कर रहे हैं, 

और 

सो रहे हैं,

और 

मनोरंजन के लिए 

यहां और वहां जा रहे हैं...!


वे नहीं जानते 

कि 

वे क्या खोज रहे हैं, 

और 

न ही क्यों? 


आत्म-विश्लेषण से 

बचकर कभी भी 

पूर्ण सुख 

और 

स्थायी संतुष्टि का 

अनुभव न करें...!

दूसरे लोगों की तरह

अपने 

वातावरण से 

अनुकूलित रोबोट 

बन कर

सुंदर जीवन को

व्यर्थ न करें..!


आत्म-मुग्धता 

जीवन की

सबसे बड़ी

बला है,

सच्चा 

आत्म-विश्लेषण ही

प्रगति की 

सबसे बड़ी कला है...!


इस होली पर

तितलियों की तरह मचलें, 

रंग बिरंगे अपने

मन का रंग बदलें...! 


शरीर पर दिया गया 

रंग तो धुल जाता है, 

पर मन पर चढ़ा

रंग मन में घुल जाता है...!


चलो इक दूजे पे

रंग मुहब्बत का लगाएं,

आप सभी को

होली की मंगल कामनाएं 💃

💃💃🥰🥰🥰

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🤗🤐🙏🙏

🙏🙏🙏! 

प्रस्तुतिकरण:

संपादकीय मंडली 

आत्मीयता पत्रिका

(स्रोत: सर्वाधिक प्रचारित लोकप्रिय भारतीय जनसाहित्य और इंटरनेट पर मुफ़्त में उपलब्ध छाया चित्र) 

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