गुलाम - (प्रेरणा दायक कहानी)

सिकंदर ने अपने रण कौशल से ग्रीस और इजिप्ट समेत उत्तर भारत तक अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया था। कई सालों से युद्ध करती सिकंदर की सेना बहुत थक चुकी थी और अब वो अपने परिवारों के पास वापस लौटना चाहती थी। सिकंदर को भी अपने सैनिकों की इच्छा का सम्मान करना पड़ा और उसने भी भारत से लौटने का मन बना लिया। पर जाने से पहले वो किसी ज्ञानी व्यक्ति को अपने साथ ले जाना चाहता था। 

स्थानीय लोगों से पूछने पर उसे एक पहुंंचे हुए महात्मा जी के बारे में पता चला जो कुछ दूरी पर स्थित एक नगर में रहते थे।

सिकंदर अपने दल-बल के साथ वहां पहुंचा। महात्मा जी निःवस्त्र एक पेड़ के नीचे ध्यान लगाकर बैठे थे। सिकंदर उनके ध्यान से बाहर आने का इंतजार करने लगा।

कुछ देर बाद महात्मा जी ध्यान से बाहर निकले और उनके आंखें खोलते ही सैनिक नारे लगाने लगे- "सिकंदर महान! सिकंदर महान!"

महात्मा जी अपने स्थान पर बैठे उन्हें ऐसा करते देख मुस्कुरा रहे थे। सिकंदर उनके सामने आया और बोला- "मैं आपको अपने देश ले जाना चाहता हूं। चलिए हमारे साथ चलने के लिए तैयार हो जाइए।"

महात्मा जी बोले- "मैं तो यहीं ठीक हूं और मैं यहां से कहीं भी नहीं जाना चाहता हूं। मैं जो कुछ भी चाहता हूं, सब यहीं पर उपलब्ध है, तुम्हें जहां जाना है जाओ।"

एक मामूली से महात्मा का यह जवाब सुनकर सिकंदर के सैनिक भड़क उठे। भला इतने बड़े राजा को कोई मना कैसे कर सकता है! 

सिकंदर ने अपने सैनिकों को शांत करते हुए महात्मा जी से कहा- "मैं ना सुनने का आदि नहीं हूं! आपको मेरे साथ चलना ही होगा! "

महात्मा जी बड़ी ही शांति से बोले- "यह मेरा जीवन है और मैं ही इसका फैसला खुद कर सकता हूं कि मुझे कहां जाना है और कहां नहीं जाना है।"

यह सुनकर सिकंदर गुस्से से लाल हो गया। उसने फौरन अपनी तलवार निकाली और महात्मा जी के गले से सटा दी और बोला- "अब क्या बोलते हो? मेरे साथ चलोगे या मौत को गले लगाना चाहोगे?"

महात्मा जी अब भी शांत थे, और बोले- "मैं तो कहीं नहीं जा रहा। अगर तुम मुझे मारना चाहते हो तो मार दो। पर, आज के बाद से कभी भी अपने नाम के साथ महान शब्द का प्रयोग मत करना क्योंकि तुम्हारे अंदर महान होने जैसी कोई भी बात नहीं है। तुम तो मेरे गुलाम के भी गुलाम हो!"

सिकंदर अब और भी क्रोधित हो उठा - भला दुनिया जीतने वाले इतने बड़े योद्धा को एक निर्बल और निःवस्त्र व्यक्ति अपने गुलाम का भी गुलाम कैसे कह सकता था!

वो क्रोधित होते हुए बोला- "तुम्हारा मतलब क्या है?"

महात्मा जी बोले- "क्रोध मेरा गुलाम है और मैं जब तक नहीं चाहता, मुझे क्रोध नहीं आता। लेकिन, तुम अपने क्रोध के गुलाम हो क्योंकि तुमने बहुत से योद्धाओं को पराजित किया। पर अपने क्रोध से नहीं जीत पाए‌ और वो जब भी चाहता है तुम्हारे ऊपर सवार हो जाता है। तो बताओ! हुए ना तुम मेरे गुलाम के गुलाम?"

सिकंदर महात्मा जी की बातें सुनकर स्तब्ध रह गया। वो उनके सामने नतमस्तक हो गया, उनके चरणों में गिर पड़ा और उन से क्षमा माँग कर अपने सैनिकों के साथ वापस लौट गया।


प्रस्तुतिकरण:

संपादकीय मंडली 

आत्मीयता पत्रिका


(स्रोत: सर्वाधिक प्रचारित लोकप्रिय भारतीय जनसाहित्य और इंटरनेट पर मुफ़्त में उपलब्ध छाया चित्र)


  

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