एक संत के सभी शिष्य खुश थे लेकिन एक शिष्य चिंतित था, संत ने कारण पूछा तो शिष्य ने कहा- गुरुदेव! मुझे सत्संग समझ में नहीं आता, इसी वजह से मैं दुःखी हूं।
संत ने कहा- कोयला ढोने वाली टोकरी में जल भर कर लाओ।
शिष्य चकित हुआ कि टोकरी में कैसे जल भरेगा? लेकिन गुरु ने आदेश दिया था इसलिए टोकरी में नदी का जल भरने चला गया, लेकिन जल टोकरी से छन कर गिर पड़ा। उसने कई बार जल भरा लेकिन टोकरी में जल टिकता ही नहीं था। वो वापस आ गया और संत से बोला- गुरुदेव! टोकरी में पानी ले आना संभव नहीं, कोई फायदा नहीं।
संत बोले- फायदा है। टोकरी में देखो।
शिष्य ने देखा, कि बार-बार पानी में कोयले की टोकरी डुबाने से वो टोकरी स्वच्छ हो गई है, और उसका कालापन धुल गया है।
संत ने कहा- ठीक जैसे ये कोयले की टोकरी स्वच्छ हो गई, उसी तरह सत्संग बार-बार सुनने से खूब फायदा होता है। भले ही अभी तुम्हारी समझ में नहीं आ रहा है, लेकिन तुम इसका फायदा बाद में महसूस करोगे।
(स्रोत: सर्वाधिक प्रचारित लोकप्रिय भारतीय जनसाहित्य और इंटरनेट पर मुफ़्त में उपलब्ध छाया चित्र)
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