एक सूफी फ़क़ीर हुआ, नाम था बायजीद।
बैठा था अपने झोपड़े के द्वार पर , तभी एक जिज्ञासु ने आकर पूछा कि धर्म क्या है ? साधना क्या है ? मार्ग क्या है? तो बायजीद ने कहा : क्या करोगे जान कर ? उस युवक ने कहा मुक्त होना है बंधन से। बायजीद हंसा, और जोर से हंसा, जैसे पागल हो।और उसने कहा: पहले ठीक से पता लगाकर आओ - कि बाँधा किसने है ? जो बंधन से मुक्त होना चाहते हो। जब तक इसका बात का पक्का पता लगा कर नहीं आओगे, तब तक मैं जवाब नहीं देने वाला ।"
कहते है , युवक वापस चला गया, और बरसो बाद लौटा- वही पागलों जैसी हंसी अब उसके पास थी।
बायजीद ने पूछा,"लगा लिया पता?"
उस युवक ने कहा,"अब कुछ पूछने नही, सिर्फ हंसी का जवाब देने आया हूँ । जैसे जैसे खोजने लगा वैसे वैसे साफ होने लगा कि बँधा तो मैं खुद ही हूँ , बांँधा तो किसी ने भी नही है, बस इतना ज्ञान होते ही सब रस्सियों को तोड़ कर आजाद हो गया!"
प्रस्तुतिकर्ति: सुजाता कुमारी
(स्रोत: सर्वाधिक प्रचारित लोकप्रिय भारतीय जनसाहित्य)
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