आज ऊपर बैठी रूह ने मेरी
बड़े जोर से ठहाका एक लगाया है....
देखो आज मेरे बच्चों ने
पंडित को बुलाया है...!
कितने जतन से
पकवान बनाया है...,
और
बड़े ही आदर भाव से खिलाया है....
जिसके लिए मुझे तरसाया था
....वही सब आज बनाया है!
और तो और ....
कौवे और कुत्ते को भी
🦅 दावत में बुलाया है🐕,
बड़े ही प्यार से
इनको भी खाना खिलाया है....!
जगह नहीं थी मेरे लिए घर में
वृद्धाश्रम पहुँचाया था,
आज मेरा फोटो
भगवान के साथ ही लगाया है...
पैसा ही नहीं था मेरे लिए
आज पंडित को
हरा नोट सरकाया है....
देखो....कैसे दिखावा कर रहे हैं,
अपने आप से ही छलावा कर रहे हैं.
ये सब मेरे सताने के डर से कर रहे हैं.
अरे ! इन्हें इतना भी नहीं पता,
क्या माँ-बाप होते हैं कभी खफ़ा ?
बस ...
सभी बच्चों से ...
इतनी सी गुज़ारिश है
कि मेरे साथ रहने वालों की भी
सिफ़ारिश है....
कि मरने के बाद नहीं,
माँ-बाप का
जीते जी करो सम्मान.
नहीं चाहते हैं वो पैसे,
न चाहें पकवान..
बस थोड़ा सा
समय निकालो,
थोड़ी सी
घर में जगह दो,
और...
रखो उनका ध्यान..!
(स्रोत: भारतीय डिजिटल जनसाहित्य)
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