मनऔर जल (सत्संग)

मन भी जल जैसा ही है, जैसे जल फर्श पर गिर जाए तो कहीं भी चला जाता है, वैसे ही मन भी चंचल है, कभी भी और कहीं भी चला जाता है।

मन को हमेशा सत्संग, भजन, कीर्तन, कथा श्रवण और प्रभु सेवा के साथ जोड़े रखना ही चाहिए जैसे जल को किसी पात्र में जोडे़ रखते हैं।

जैसे जल को फ्रिज में रखने से ठंडा रहता है और ICE BOX में रखने से सिमट कर बर्फ में परिवर्तित हो जाता है, वैसे ही मन फ्रिज रूपी सत्संग में ठंडा और शांत रहता है और भजन, स्मरण और सेवा करने से सब सिमटकर एक होकर परमात्मा में लीन हो जाता है।

अगर बर्फ को यदि बाहर धूप में रखा तो वो पिघलकर जल होकर इधर-उधर होकर बिखर जाती है वैसे ही मन भी मायारूपी धूप में, सत्संग से दूर होकर बिखर जाता है, इसलिए हमेशा सत्संग और नाम जप से स्वयं को जोड़ कर रखें।

(स्रोत: भारतीय जनश्रुतियाँ) 

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