सच्ची नमाज (साखी)

एक बड़ी पहुँची हुई सूफी सन्त थी। पर कभी किसी ने उनको नमाज पढ़ते नही देखा, ऐसी कोई इबादत करते नही देखा जैसी इबादत किताबों में पढ़ाई जाती है, ना ही वैसे कपड़े पहने जो इंसान को जोकर बना दे। 

एक दिन एक बड़े ही मजहबी 5 टाईम के नमाजी ने उनसे पूछा के आप इतनी बड़ी सूफी ओलिया हो पर आप कभी नमाज क्यों नही पढ़ती जबकि हम जैसे लोग जो ओहदे में आपसे बहुत छोटे है फिर भी 5 टाईम की नमाज पढ़ते हैं? 

सन्त ने उसको जवाब दिया कि तूम पांच टाईम की नमाज इसलिए पढ़ते हो क्योंकि तुम खुदा को याद करते हो। लेकिन मैं इसलिए नही पढ़ती क्योंकि मैं उसको कभी भूली ही नही, जब मैं तुझसे बात कर रही हूँ तब भी मेरी आती जाती साँसों में उसका नाम चल रहा है। नमाज वो पढ़ते हैं जिसको उसे याद करना पड़ता है, जो कभी उसको भूले ही नही वो नमाज पढ़कर याद किसको करेंगे? 

संगत जी, हमारा भी यही हाल होना चाहिए कि भजन सिमरन कभी ना विसरे जी!

प्रस्तुतिकर्ती: सुजाता कुमारी

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