एक बूढ़े बाप ने अपने बेटे को बुलाकर एक बहुत ही पुरानी घड़ी थमाई और कहा,"बेटा! यह घड़ी तुम्हारे परदादा की है। इस घड़ी की उमर दो सौ साल होगी। ये घड़ी मैं अब तुम्हें सौंपना चाहता हूं। लेकिन इससे पहले तुम्हें मेरा एक काम करना होगा। इसे लेकर किसी घड़ीवाले की दुकान पर जाओ और उससे पूछो कि इसे कितनी कीमत में खरीदेगा।"
बेटा जब वापस लौटा तो उसने बताया,"पिता जी! घड़ी की हालत देखते हुए दुकानदार इसकी कीमत पांच रुपए से ज्यादा देने को तैयार नहीं है।"
बाप ने कहा-,"बेटा! अब इसे ले जाकर वहां कीमत लगवाओ जहां एंटीक चीजें खरीदी जाती हैं।"
बेटा फिर वापस आया और बोला,"पिता जी! एंटीक वाले इस घड़ी की कीमत पांच हजार रूपए लगा रहे हैं।"
अब तीसरी बार बाप ने फिर कहा,"बेटा! अब इस घड़ी को म्यूजियम वालों के पास ले जाओ और उनसे इसकी कीमत लगवाओ।"
बेटे ने वहां से वापस आकर कहा,"पिता जी! म्यूजियम वाले तो इसकी कीमत पांच लाख रूपए तक देने को राजी हैं।"
यह सुनकर बूढ़े बाप ने बेटे से कहा,"बेटा! घड़ी की कीमत लगाकर मैं तुम्हें यह समझाना चाहता था, कि अपने आपको उस जगह बिल्कुल भी बर्बाद मत करो जहां तुम्हारी कोई इज्जत और वकार ना हो। तुम्हारी अहमियत का अंदाजा वहीं लगाया जाएगा, जिन्हें परखने की तमीज होगी।"
प्रस्तुतकर्ती: सुजाता कुमारी
(स्रोत: भारतीय लोकश्रुतियां)
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