एक-एक कदम मौत आगे बढ़ रही है।
एक-एक सांस खर्च हो रही है।
हम रोज किसी न किसी की अर्थी उठते हुए देखते हैं, लेकिन फिर भी भूले बैठे हैं कि हमारा नंबर भी आ ही रहा है।
जिस काम के लिए मनुष्य जन्म पाया है वो काम तो हमने किया ही नहीं है, जो हमारे साथ जाएगा वो तो कमाया ही नहीं है।
कभी हमने उस रूह के बारे में सोचा, जो परमात्मा से बिछड़ी है और जन्मों-जन्मों से इस जामे से उस जामे में भटक रही है, अब अगर मौका मिला है और सत्गुरु का साथ मिला है, तो क्यों न वो काम भी कर लें, हमें सिर्फ और सिर्फ भजन-सिमरन ही तो रोजमर्रा के कामों के साथ जोड़ना है।
नौकरी करते रहें, बिजनस करते रहें, स्कूल-कॉलेज जाते रहें या घर गृहस्थी संभालते रहें, बस! उठते और बैठते उस मालिक (परमात्मा) को ही तो याद करना है और भजन-सिमरन ही तो करना है।
नियमित भजन-सिमरन ने हमारी तकदीर और तस्वीर दोनों बदल देनी है, बस! हमें जरूरत है अपने सत्गुरू पर सिर्फ और सिर्फ विश्वास की और भरोसे की।
(सौजन्य:अज्ञात)
एक-एक सांस खर्च हो रही है।
हम रोज किसी न किसी की अर्थी उठते हुए देखते हैं, लेकिन फिर भी भूले बैठे हैं कि हमारा नंबर भी आ ही रहा है।
जिस काम के लिए मनुष्य जन्म पाया है वो काम तो हमने किया ही नहीं है, जो हमारे साथ जाएगा वो तो कमाया ही नहीं है।
कभी हमने उस रूह के बारे में सोचा, जो परमात्मा से बिछड़ी है और जन्मों-जन्मों से इस जामे से उस जामे में भटक रही है, अब अगर मौका मिला है और सत्गुरु का साथ मिला है, तो क्यों न वो काम भी कर लें, हमें सिर्फ और सिर्फ भजन-सिमरन ही तो रोजमर्रा के कामों के साथ जोड़ना है।
नौकरी करते रहें, बिजनस करते रहें, स्कूल-कॉलेज जाते रहें या घर गृहस्थी संभालते रहें, बस! उठते और बैठते उस मालिक (परमात्मा) को ही तो याद करना है और भजन-सिमरन ही तो करना है।
नियमित भजन-सिमरन ने हमारी तकदीर और तस्वीर दोनों बदल देनी है, बस! हमें जरूरत है अपने सत्गुरू पर सिर्फ और सिर्फ विश्वास की और भरोसे की।
(सौजन्य:अज्ञात)
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