हम दीये जलाकर, जोत जगा कर, घंटियां बजा कर दीवाली मनाते हैं। लेकिन, सन्तों की दीवाली बिलकुल अलग होती है।
सन्त अन्तर्मन होकर सिमरन मे लीन होकर हर रोज दीवाली मनाते हैं।
सन्तों के मस्तक मे दिव्य ज्योति हर पल आलोकिक प्रकाश फैलाती है।
अनहद नाद हर समय धुनकारे देता है।
सन्तों की दीवाली हर रोज होती है। इसके लिए उन्हें किसी खास दिन का इन्तजार नही करना पडता।
"सन्त दीवाली नित करे सत लोक के माही।"
(प्रस्तुतकर्ती:
सुजाता कुमारी
प्रस्तुतिकरण की दिनांक: ०९ जनवरी,२०२१
प्रकाशन की दिनांक: ०१ नवंबर,२०२१
(स्रोत: भारतीय जनश्रुतियां)
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