भारतीय त्योहारों का महत्त्व (Importance of Indian Festivals)

भारत त्योहारों और मेलों का देश है। वस्‍तुत: वर्ष के प्रत्‍येक दिन उत्‍सव मनाया जाता है। पूरे विश्‍व की तुलना में भारत में अधिक त्योहार मनाए जाते हैं। प्रत्‍येक त्योहार अलग अवसर से संबंधित है, कुछ वर्ष की ऋतुओं का, फसल कटाई का, वर्षा ऋतु का अथवा पूर्णिमा का स्‍वागत करते हैं। दूसरों में धार्मिक अवसर, ईश्‍वरीय सत्‍ता/परमात्‍मा व संतों के जन्‍म दिन अथवा नए वर्ष की शरूआत के अवसर पर मनाए जाते हैं।
 

इनमें से अधिकांश त्योहार भारत के अधिकांश भागों में समान रूप से मनाए जाते हैं। तथापि यह हो सकता है‍ कि उन्‍हें देश के विभिन्‍न भागों में अलग-अलग नामों से पुकारा जाता हो अथवा अलग तरीके से मनाया जाता हो।

त्योहार और मेले भारतीय संस्कृति के मुख्य तत्व हैं। वर्ष भर कोई न कोई पर्व या मेला कहीं न कहीं आयोजित हो रहा होता है। इन्हें बड़े उत्साह से मनाया जाता है।

भौतिकतावाद और वैश्वीकरण की आपाधापी भरे युग में बड़ी संख्या में लोगों का इन त्योहारों में शामिल होना आश्चर्य पैदा करने वाला है। राष्ट्रीय व स्थानीय स्तर पर मनाए जाने वाले इन पर्वे की प्रतीक्षा की जाती है और पूरी तैयारी के साथ इन्हें मनाया जाता है। 

संसार के अन्य देशों में भी ऐसे आयोजन होते रहते हैं, किंतु भारतीय आयोजनों का अंतर समझने से भारतीय संस्कृति की विशिष्टता उभर कर सामने आती है। यह विशिष्टता देश की एकता और भाईचारे की भावना को दृढ आधार प्रदान करने वाली और मूल्यों को संरक्षित करने वाली है। 

प्रमुख बात है कि मेलों, त्योहारों को व्यक्तिगत रूप से नहीं पारिवारिक स्तर पर मनाया जाता है।

कुछ मेले तो ऐसे हैं, जो प्राचीन काल से ही स्थानीय स्तर पर आयोजित होते हैं, जिनमें आसपास के गावों, कस्बों के निवासी ही सम्मिलित होते हैं। लगभग सभी ऐसे त्योहार, मेले धर्म और धार्मिक संतों, देवी देवताओं से जुड़े होने के कारण सदाचार का वातावरण बनाते हैं। 

इन आयोजनों पर अनिवार्य रूप से हाट-बाजार का लगना आर्थिक आयाम भी

जोड़ता है। छोटे-छोटे दुकानदार, शिल्पी इन बाजारों के लिए वर्ष भर प्रतीक्षा करते हैं और विशेष उत्पादों की बिक्री करते हैं। ग्राहकों को भी ऐसे बाजारों का इंतजार रहता है। बांसुरी, मिट्टी के दीपक, बच्चों के मिट्टी के खिलौने, खील-बताशे आदि इन बाजारों में ही प्रचुरता से नजर आते हैं।

सभी पर्वों का धार्मिक महत्व तो है ही साथ ही वैज्ञानिक एवं मनोवैज्ञानिक दृष्टि से भी इनकी उपयोगिता कुछ कम नहीं है। 

विशेष पर्व अथवा त्योहारों पर अपना साफ सुथरा एवं सुसज्जित घर देखकर हमारा तन-मन भी पुलकित हो जाता है। स्वच्छ निर्मल मन से स्वस्थ एवं सुगंधित वातावरण में की गई पूजा-उपासना भी पूर्ण सफल होती है। ऐसे निर्मल वातावरण में जब हम ईश्वर के साथ एकाकार होने का प्रयत्न करते हैं तो हमें अनुभव होता है कि किसी सीमा तक हम ईश्वर का दर्शन भी कर पा रहे हैं क्योंकि यदि हमारा तन-मन प्रफुल्लित एवं आनंदित है तो यह भी एक प्रकार से हम पर ईश्वर का आशीर्वाद ही है। 

इन्हीं पर्व एवं त्योहारों के कारण हम अपने प्रिय जनों, मित्रों एवं रिश्तेदारों से मिलकर कुछ समय के लिये सभी तनावों को भुलकर अपना सुख-दुख बांट लेते हैं तथा अपनों के प्रेम एवं स्नेह जल से अभिषिक्त होकर आनंदित एवं आींादित हो जाते हैं और एक बार पुनः नव चेतना एवं शारीरिक ऊर्जा का अनुभव करते हैं जो हमें वर्षपर्यन्त प्रसन्न व स्वस्थ बनाये रखते हैं।

अतः यह सुनिश्चित है कि विविध पर्व एवं विभिन्न त्योहार हमारे जीवन में सामाजिक, धार्मिक, वैज्ञानिक ,आर्थिक एवं मनोवैज्ञानिक सभी दृष्टियों से अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं और हमें हमारी धार्मिक परंपरा एवं संस्कृति से जोड़े रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।


सलिल सरोज

समिति अधिकारी
लोक सभा सचिवालय
संसद भवन ,नई दिल्ली
+91 9968638267

(प्रस्तुतिकरण: सुजाता कुमारी)

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