बुढापा
किसी ने द्वार खटखटाया
मैं लपककर आई,
देख सामने उसे
मैं सिर से पांव
तक थरथराई।
जैसे ही दरवाजा खोला
तो सामने बुढ़ापा खड़ा था,
भीतर आने के लिए
जिद पर अड़ा था...
मैंने कहा,
"नहीं भाई!
अभी नहीं,
अभी तो यह घर मेरा है,
नहीं
कुछ इसमें
तेरा है।''
वह हँसा और
बोला,
"यह घर न तेरा है न मेरा है,
चिड़िया रैन बसेरा है..."
मैंने कहा
"...अभी तो कुछ दिन रहने दे,
कुछ गर्मियां
कुछ सर्दियाँ ओर सहने दे।
अभी तक
अपने ही लिए
जीयी हूँ,
औरों के लिए
कुछ नहीं
कियी हूँ।
अब जा कर
अकल
आई है,
सुना है कि
तू तो अच्छा
भाई है।
तो कुछ दिन
ओर गर्म चाय
पीने दे,
दूसरों के लिए
भी मुझे
जीने दे...''
बुढ़ापा बोला,
"अगर ऐसी बात
है तो
चिंता मत कर,
मुझसे तो क्या
मौत से
भी न डर,
उम्र भले ही तेरी बढ़ेगी
मगर बुढ़िया नहीं कहलाएगी,
जब तक लगाएगी ठहाके
और जीएगी तू दूसरों के लिए
खुद को जवान ही पाएगी...''
देख ढलते सूरज
उठते धुएँ
गुबार को
यूं न घबराइए,
लगा ठहाके जीएं
औरों के लिए
बढ़ती उम्र का
लुत्फ़ उठाइये...!
किसी ने द्वार खटखटाया
मैं लपककर आई,
देख सामने उसे
मैं सिर से पांव
तक थरथराई।
जैसे ही दरवाजा खोला
तो सामने बुढ़ापा खड़ा था,
भीतर आने के लिए
जिद पर अड़ा था...
मैंने कहा,
"नहीं भाई!
अभी नहीं,
अभी तो यह घर मेरा है,
नहीं
कुछ इसमें
तेरा है।''
वह हँसा और
बोला,
"यह घर न तेरा है न मेरा है,
चिड़िया रैन बसेरा है..."
मैंने कहा
"...अभी तो कुछ दिन रहने दे,
कुछ गर्मियां
कुछ सर्दियाँ ओर सहने दे।
अभी तक
अपने ही लिए
जीयी हूँ,
औरों के लिए
कुछ नहीं
कियी हूँ।
अब जा कर
अकल
आई है,
सुना है कि
तू तो अच्छा
भाई है।
तो कुछ दिन
ओर गर्म चाय
पीने दे,
दूसरों के लिए
भी मुझे
जीने दे...''
बुढ़ापा बोला,
"अगर ऐसी बात
है तो
चिंता मत कर,
मुझसे तो क्या
मौत से
भी न डर,
उम्र भले ही तेरी बढ़ेगी
मगर बुढ़िया नहीं कहलाएगी,
जब तक लगाएगी ठहाके
और जीएगी तू दूसरों के लिए
खुद को जवान ही पाएगी...''
देख ढलते सूरज
उठते धुएँ
गुबार को
यूं न घबराइए,
लगा ठहाके जीएं
औरों के लिए
बढ़ती उम्र का
लुत्फ़ उठाइये...!
(स्रोत: जनश्रुती)
प्रस्तुतकर्ती:
सुजाता कुमारी
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