क्या नरेंद्र दामोदरदास मोदी 'न्यू इंडिया' की अवधारणा को यथार्थ के धरातल पर उतारने में असफल हो गया है?
भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी और उसके सलाहकार गुट ने डॉ स्वामी अप्रतिमानंदा जी के "न्यू इंडिया" (New India) के विचार को अपना नारा तो बना लिया है। परंतु, विचारणीय बात यह है कि क्या नरेंद्र दामोदरदास मोदी की भारत सरकार ने पुराने भारत के शासन और प्रशासन में व्याप्त असंख्य नाना प्रकार के दोषों को पिछले छह वर्षों में एक बड़ी सीमा तक सफलता से समाप्त कर दिया है? यदि नहीं तो डाॅ स्वामी अप्रतिमानंदा जी द्वारा प्रतिपादित "न्यू इंडिया" की अवधारणा को यथार्थ के धरातल पर उतारने में क्या नरेंद्र दामोदरदास मोदी असफल हो गया है जैसा कि भारतीय सरकार द्वारा लाए गए किसान-विरोधी तीन बिलों को रदद करवाने के लिए दिल्ली में चल रहे किसान-सत्याग्रह में अब तक शहीद हो गए ७० किसानों की शहादत, चीन देश द्वारा बार-बार भारतीय सीमााओं में अतिक्रमण,
अंतर्राष्ट्रीय बााजार में पेट्रोल और गैस के दाम गिरने के बावजूद भारतीय बाजार में पेट्रोल और कुकिंग गैस के सिलेंडरों के दामों में बेतहाशा वृद्धि आदि से प्रतीत हो रहा है...? यदि वह असफल हो गया है तो अब किस के नेतृत्व से अपेक्षा की जाए कि वास्तव में ही एक नए भारत (न्यू इंडिया) का स्वप्न शीघ्रताशीघ्र साकार हो जाए? 'न्यू इंडिया' का वह स्वर्णिम स्वप्न जिसकी रूपरेखा डाॅ स्वामी अप्रतिमानंदा जी के अप्रैल, २०१४ में प्रकाशित स्वर्णिम ग्रंथ "दी वसुधीयोटिक वर्ल्ड गवर्नमेंट एंड दी ग्रेट ड्रीम ऑफ दी परमतंत्रता" में संजोई गई है!
- स्वामी मूर्खानंंद जी "चाणक्य"
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