किसान ही है असली शेर (किसानवाणी-३)...!



चिरनिद्रा में सो रहे लोग,
किसानों का छिन रहा भोग ।।
मोबाइल का लग रहा रोग,
इसी में खोए खोए रहते लोग ।।

न्यायालय ने अब सुध ली ,
शहादतें जब 60 पार चली ।
ताकीद तो कड़क ही दी,
नीयत भी होगी ही भली ।।

उम्मीद पे दुनिया जगती है,
सरकार की बेरुखी खलती है ।
जनतंत्र में शहादत शोभे ना,
जनतंत्र की जड़ें सिसकती है ।।

अपनी ढफली अपना राग,
सबसे ऊपर अपनी टाँग !
सत्ता के गलियारों ने अब,
जनहित जप का रचा है स्वांग !!

असली नस्लें रही नहीं,
नकली फसलें उभर रही !
बीजों के गुण धर्म बिगाड़े,
पौष्टिक दूध दही भी नहीं !!

हर जीवन का छिन रहा सुख,
अपराधी का जागे भाग !
चारों ओर घूम रहे हैं,
फन फैलाये काले नाग !!

इससे पहले हो जाये देर,
लोकतंत्र न हो जाये ढ़ेर ।
सब दें साथ किसान का,
किसान ही है असली शेर ।।

- आवेश हिन्दुस्तानी 12.1.2021

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