न्यायालय ने अब सुध ली ,
शहादतें जब 60 पार चली ।
ताकीद तो कड़क ही दी,
नीयत भी होगी ही भली ।।
उम्मीद पे दुनिया जगती है,
सरकार की बेरुखी खलती है ।
जनतंत्र में शहादत शोभे ना,
जनतंत्र की जड़ें सिसकती है ।।
अपनी ढफली अपना राग,
सबसे ऊपर अपनी टाँग !
सत्ता के गलियारों ने अब,
जनहित जप का रचा है स्वांग !!
असली नस्लें रही नहीं,
नकली फसलें उभर रही !
बीजों के गुण धर्म बिगाड़े,
पौष्टिक दूध दही भी नहीं !!
हर जीवन का छिन रहा सुख,
अपराधी का जागे भाग !
चारों ओर घूम रहे हैं,
फन फैलाये काले नाग !!
इससे पहले हो जाये देर,
लोकतंत्र न हो जाये ढ़ेर ।
सब दें साथ किसान का,
किसान ही है असली शेर ।।
- आवेश हिन्दुस्तानी 12.1.2021
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