वर्तमान का सच - शरद् की शरद-वाणियां (कविता)

सच को न्याय यदि मिले ना,

तो पीड़ा दूनी हो जाती है!

शंका भ्रमित हो जाए यदि,

तो अनहोनी हो जाती है!

धुले दूध के रहे 
जब ना

आंचल रंगीले 
किसी के भी - 
तो जांच एजेंसियां 
आगे 
सत्ता के 
बौनी हो जाती हैं...!

- शरदेन्दु शुक्ला 'शरद' पुणेकर 

Comments