मानो कि मेरी बेटी हो, चहकने लगती हैं!
मेरी माँ का तस्सवुर आते ही मेरे जहन में मेरे
बदन की हर क्यारी महकने लगती है!
मेहनत से बनी माथे पे पसीने की हर बूँद
बाप के पैसों की तरह खनकने लगती है!
मेरी बीवी की पायल की तरह छनकने लगती हैं!
रात को गोद में रखके जब मैं थपकियाँ देता हूँ
सच मानो, मेरे बेटे की तरह तुतलाने लगती है!
कितनी नेमतें हैं खुदा के इस घर में, क्या कहें
साँझ खुद मेरे चौखट पे काला टीका करने लगती है!
- सलिल सरोज
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