एक नवयुवती बस में बैठी थी। अगले स्टॉप पर एक दबंग और क्रोधी बूढ़ी महिला आई, और उसके बगल की सीट पर बैठ गई और फिर अपने कई सारे बैग उस नवयुवती से सटाकर रख दिए।
बूढ़ी महिला के दूसरी ओर बैठी महिला परेशान हो गई और उसने नवयुवती से कहा- तुम उस बूढ़ी महिला से कुछ बोलती क्यों नहीं हो?
नवयुवती ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया- हर बात पर असभ्य व्यवहार या बहस करना बिल्कुल भी आवश्यक नहीं है। मैं अगले स्टॉप पर उतरने वाली हूं।
यह प्रतिक्रिया बहुत ही महत्वपूर्ण है, जिसे कि सुनहरे अक्षरों में लिखा जाना चाहिए-
हर बात पर असभ्य व्यवहार या बहस करना बिल्कुल भी आवश्यक नहीं है।
आखिर हमारे साथ की यात्रा है ही कितनी लम्बी?
अगर हमें यह एहसास हो जाए, कि यहां पर हमारा समय कितना कम है, तो व्यर्थ के झगड़े, निरर्थक तर्क, बात-बात पर असहमति और दूसरों में गलती खोजने वाला रवैया समय और ऊर्जा की बर्बादी का कारण नहीं, तो और क्या है?
अगर किसी ने हमारा दिल तोड़ा, तो हम शांत रहें।
आखिर यात्रा इतनी छोटी जो है।
अगर किसी ने हमारे साथ विश्वासघात किया, धमकाया, धोखा दिया या अपमानित किया तो शांत रहें और क्षमा करें।
आखिर हमारी यात्रा इतनी कम जो है।
जब भी कोई मुसीबत हमारे सामने आए, तो हमें याद रखना चाहिए, कि हमारे साथ की यात्रा बहुत ही छोटी है।
इस यात्रा की अवधि कोई भी नहीं जानता है।
कोई नहीं जानता, कि उनका पड़ाव कब आएगा?
हमारी यात्रा एक साथ इतनी कम है, कि मालूम ही नहीं है कि अगले पल क्या होने वाला है?
तो क्यों नहीं हम अपने दोस्तों व परिवारजनों का ध्यान रखें, और अपने कामों को संजोएं।
आइए, हम एक-दूसरे के लिए सम्मानजनक, दयालु और क्षमाशील हों, और फिर यह अहसास हमें कृतज्ञता और उल्लास से भर दे।
अगर मेरे व्यवहार ने आपको कभी कोई चोट पहुंचाई है, तो मैं आपसे क्षमा मांगता हूं।
यदि आपने मुझे कभी दुख पहुंचाया है, तो मैंने आपको पहले ही क्षमा कर दिया है।
आखिर हमारी यात्रा एक साथ है ही कितनी?
बीते हुए सुखद समय के लिए हम हर पल ईश्वर का आभार मानते हुए उसका शुक्रिया अदा करते रहें, और इस जीवन यात्रा को सुखमय बनाएं।
(स्रोत: भारतीय जनश्रुतियां)
बूढ़ी महिला के दूसरी ओर बैठी महिला परेशान हो गई और उसने नवयुवती से कहा- तुम उस बूढ़ी महिला से कुछ बोलती क्यों नहीं हो?
नवयुवती ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया- हर बात पर असभ्य व्यवहार या बहस करना बिल्कुल भी आवश्यक नहीं है। मैं अगले स्टॉप पर उतरने वाली हूं।
यह प्रतिक्रिया बहुत ही महत्वपूर्ण है, जिसे कि सुनहरे अक्षरों में लिखा जाना चाहिए-
हर बात पर असभ्य व्यवहार या बहस करना बिल्कुल भी आवश्यक नहीं है।
आखिर हमारे साथ की यात्रा है ही कितनी लम्बी?
अगर हमें यह एहसास हो जाए, कि यहां पर हमारा समय कितना कम है, तो व्यर्थ के झगड़े, निरर्थक तर्क, बात-बात पर असहमति और दूसरों में गलती खोजने वाला रवैया समय और ऊर्जा की बर्बादी का कारण नहीं, तो और क्या है?
अगर किसी ने हमारा दिल तोड़ा, तो हम शांत रहें।
आखिर यात्रा इतनी छोटी जो है।
अगर किसी ने हमारे साथ विश्वासघात किया, धमकाया, धोखा दिया या अपमानित किया तो शांत रहें और क्षमा करें।
आखिर हमारी यात्रा इतनी कम जो है।
जब भी कोई मुसीबत हमारे सामने आए, तो हमें याद रखना चाहिए, कि हमारे साथ की यात्रा बहुत ही छोटी है।
इस यात्रा की अवधि कोई भी नहीं जानता है।
कोई नहीं जानता, कि उनका पड़ाव कब आएगा?
हमारी यात्रा एक साथ इतनी कम है, कि मालूम ही नहीं है कि अगले पल क्या होने वाला है?
तो क्यों नहीं हम अपने दोस्तों व परिवारजनों का ध्यान रखें, और अपने कामों को संजोएं।
आइए, हम एक-दूसरे के लिए सम्मानजनक, दयालु और क्षमाशील हों, और फिर यह अहसास हमें कृतज्ञता और उल्लास से भर दे।
अगर मेरे व्यवहार ने आपको कभी कोई चोट पहुंचाई है, तो मैं आपसे क्षमा मांगता हूं।
यदि आपने मुझे कभी दुख पहुंचाया है, तो मैंने आपको पहले ही क्षमा कर दिया है।
आखिर हमारी यात्रा एक साथ है ही कितनी?
बीते हुए सुखद समय के लिए हम हर पल ईश्वर का आभार मानते हुए उसका शुक्रिया अदा करते रहें, और इस जीवन यात्रा को सुखमय बनाएं।
(स्रोत: भारतीय जनश्रुतियां)
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