औरत ने जन्म दिया मर्दों को..मर्दों ने उसे बाजार दिया, जब जी चाहा मसला कुचला जब जी चाहा दुत्कार दिया... (8 मार्च अंतर्राष्ट्रीय महिला-दिवस पर विशेष पेशकश)
मर्दों ने उसे बाजार दिया,
जब जी चाहा मसला कुचला
जब जी चाहा दुत्कार दिया...
तुलती है कहीं दीनारों में,
बिकती हैं कहीं बाजारों में,
नंगी नचवाई जाती है
अययाशों के दरबारों में,
जो बट जाती है इज्जतदारों में...
जिन होंठों ने इनको प्यार किया,
उन होंठों का व्यापार किया,
जिस कोख में इनका जिस्म ढला,
उस कोख का कारोबार किया...
मर्दों ने बनाई जो रस्में
उनको हक का फरमान कहा,
औरत के जलने को कुरबानी
और बलिदान कहा ...
खिदमत के बदले रोटी दी
और उसको भी एहसान कहा...
संसार की हर एक बेशर्मी
गुरबत की गोद में पलती है,
चकलों में ही आ कर रूकती है
फाकों से जो राह निकलती है,
मर्दों की हवस है जो अक्सर
औरत के पाप में ढलती है..
औरत संसार की किस्मत है
फिर भी तकदीर की हेटी है,
अवतार पैगंबर जनती है
फिर भी शैतान की बेटी है...
ये वो बदकिस्मत माँ है
जो बेटों की सेज पे लेटी है...
औरत ने जन्म दिया मर्दों को..."
साहिर लुधयानवी के, "साधना" चित्रपट में फिलमाए गए, संवेदनशील सदाबहार मार्मिक गीत की ये पंक्तियाँ आज भी सहज ही समाज में महिला-वेश्याओं की दुखद स्थिति के बारे में बताती हैं !
(Foto: Courtesy of film Batla House , www.tanishq.co.in )
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