मीरा बोलीं,"जिस पानी में मछली पैदा होती है उसी पानी में मेंढक भी पैदा होता है और उसी पानी में कछुआ भी पैदा होता है। लेकिन जो प्रेम मछली जानती है वो प्रेम मेंढक और कछुआ नहीं जानते हैं।
मछली पानी के बिना मर जाएगी और मैं भी अपने गिरधारी के बिना मर जाऊंगी।
मेंढक तो सूखे में सालों-साल तक बेहोश पड़े रहते हैं, पर मरते नहीं हैं, लेकिन मछली मर जाती है।
वैसे ही मैं हूं, मैं भी अपने गिरधारी के बिना नहीं जी सकती हूं।"
भक्तों, हम लोगों में अधिकतर तो कछुआ और मेंढक हैं जिनको अपने प्रभु से प्रेम नहीं है। असली भक्त तो प्रभु-प्रेम के बिना जी ही नहीं सकता है।
"जिन खोजा नित पाया
गहरे पानी बैठ,
मैं वोरी ढूंढन गई
रही किनारे बैठ"
जिसने दूंढ़ा उसे मिल गया, और हे नाथ! मैं डरपोक किनारे पर ही बैठी रही, मुझे कुछ भी नहीं मिला।
तात्पर्य यह है कि मीरा ने खोजा और मिल गया।
जब तक ह्रदय में प्रभु को पाने कि लालसा इस हद तक न पैदा हो जाए, कि उसके बिना जीना ही मुहाल हो जाए, तब तक उसे या उसके प्रेम को पाने का निरंतर प्रयास करते रहना चाहिए।
(स्रोत: भारतीय जनश्रुतियां )
मछली पानी के बिना मर जाएगी और मैं भी अपने गिरधारी के बिना मर जाऊंगी।
मेंढक तो सूखे में सालों-साल तक बेहोश पड़े रहते हैं, पर मरते नहीं हैं, लेकिन मछली मर जाती है।
वैसे ही मैं हूं, मैं भी अपने गिरधारी के बिना नहीं जी सकती हूं।"
भक्तों, हम लोगों में अधिकतर तो कछुआ और मेंढक हैं जिनको अपने प्रभु से प्रेम नहीं है। असली भक्त तो प्रभु-प्रेम के बिना जी ही नहीं सकता है।
"जिन खोजा नित पाया
गहरे पानी बैठ,
मैं वोरी ढूंढन गई
रही किनारे बैठ"
जिसने दूंढ़ा उसे मिल गया, और हे नाथ! मैं डरपोक किनारे पर ही बैठी रही, मुझे कुछ भी नहीं मिला।
तात्पर्य यह है कि मीरा ने खोजा और मिल गया।
जब तक ह्रदय में प्रभु को पाने कि लालसा इस हद तक न पैदा हो जाए, कि उसके बिना जीना ही मुहाल हो जाए, तब तक उसे या उसके प्रेम को पाने का निरंतर प्रयास करते रहना चाहिए।
(स्रोत: भारतीय जनश्रुतियां )
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