सीएए (CAA) की जड़ की तहकीकात (समसामयिक कविता)


CAA सीएए के नाम 
हो रहा जो शोर है,
फालतू की बात में 
निशाना कोई और है...

अफवाह की चाल है 
महिला बनी ढाल है ।

इसे जाने तू भी
और मैं भी इसे जाने हूं ।

भड़की फिजा पे
देश करे गौर है ,
रायता फैलाने वाला
हारा सिरमौर है ।

इसे जाने तू भी
और मैं भी इसे जाने हूं ।

पंगा न लो वर्ना
लठियाय जाओगे,
रोते-रोते आजीवन
मरहम लाओगे ।

ऐसों का किधर
ना ठौर है ,
घुस के दुश्मन को
मारने का दौर है ।

इसे जाने तू भी
और मैं भी इसे जाने हूं ।

- शरदेन्दु शुक्ला 'शरद' पुणेकर

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