आत्मीयता क्या है ? - ओशो रजनीश के विचार

आत्मीयता क्या है ?
हम सभी इसे चाहते हैं- और हम सभी इससे बचते हैं। क्यों?
सभी आत्मीयता से डरते हैं। यह बात और है कि इसके बारे में तुम सचेत हो या नहीं। आत्मीयता का मतलब होता है कि किसी अजनबी के सामने स्वयं को पूरी तरह से उघाड़ना। हम सभी अजनबी हैं-   कोई भी किसी को नहीं जानता। हम स्वयं के प्रति भी अजनबी हैं, क्योंकि हम नहीं जानते कि हम हैं कौन।
आत्मीयता तुम्हें अजनबी के करीब लाती है। तुम्हें अपने सारे सुरक्षा कवच गिराने हैं; सिर्फ तभी, आत्मीयता संभव है। और भय यह है कि यदि तुम अपने सारे सुरक्षा कवच, तुम्हारे सारे मुखौटे गिरा देते हो, तो कौन जाने कोई अजनबी तुम्हारे साथ क्या करने वाला है।
एक तरफ आत्मीयता अनिवार्य जरूरत है, इसलिए सभी यह चाहते हैं। लेकिन हर कोई चाहता है कि दूसरा व्यक्ति आत्मीय हो कि दूसरा व्यक्ति अपने बचाव गिरा दे, संवेदनशील हो जाए, अपने सारे घाव खोल दे, सारे मुखौटे और झूठा व्यक्तित्व गिरा दे, जैसा वह है वैसा नग्न खड़ा हो जाए।
यदि तुम सामान्य जीवन जीते, प्राकृतिक जीवन जीते तो आत्मीयता से कोई भय नहीं होता, बल्कि बहुत आनंद होता-दो ज्योतियां इतनी पास आती हैं कि लगभग एक बन जाए। और यह मिलन बहुत बड़ी तृप्तिदायी, संतुष्टिदायी, संपूर्ण होती है। लेकिन इसके पहले कि तुम आत्मीयता पाओ, तुम्हें अपना घर पूरी तरह से साफ करना होगा।
सिर्फ ध्यानी व्यक्ति ही आत्मीयता को घटने दे सकता है। आत्मीयता का सामान्य सा अर्थ यही होता है कि तुम्हारे लिए हृदय के सारे द्वार खुल गए, तुम्हारा भीतर स्वागत है और तुम मेहमान बन सकते हो। लेकिन यह तभी संभव है जब तुम्हारे पास हृदय हो और जो दमित कामुकता के कारण सिकुड़ नहीं गया हो, जो हर तरह के विकारों से उबल नहीं रहा हो, जो कि प्राकृतिक है, जैसे कि वृक्ष; जो इतना निर्दोष है जितना कि एक बच्चा। तब आत्मीयता का कोई भय नहीं होगा।
विश्रांत होओ और समाज ने तुम्हारे भीतर जो विभाजन पैदा कर दिया है उसे समाप्त कर दो। वही कहो जो तुम कहना चाहते हो। बिना फल की चिंता किए अपनी सहजता के द्वारा कर्म करो। यह छोटा सा जीवन है और इसे यहां और वहां के फलों की चिंता करके नष्ट नहीं किया जाना चाहिए।
आत्मीयता के द्वारा, प्रेम के द्वारा, दूसरें लोगों के प्रति खुल कर, तुम समृद्ध होते हो। और यदि तुम बहुत सारे लोगों के साथ गहन प्रेम में, गहन मित्रता में, गहन आत्मीयता में जी सको तो तुमने जीवन सही ढंग से जीया, और जहां कहीं तुम हो…तुमने कला सीख ली; तुम वहां भी प्रसन्नतापूर्वक जीओगे।
लेकिन इसके पहले कि तुम आत्मीयता के प्रति भयरहित होओ, तुम्हें सारे कचरे से मुक्त होना होगा जो धर्म तुम्हारे ऊपर डालते रहे हैं, सारा कबाड़ जो सदियों से तुम्हें दिया जाता रहा है। इस सब से मुक्त होओ, और शांति, मौन, आनंद, गीत और नृत्य का जीवन जीओ। और तुम रूपांतरित होओगे…जहां कहीं तुम हो, वह स्थान स्वर्ग हो जाएगा।
अपने प्रेम को उत्सवपूर्ण बनाओ, इसे भागते दौडते किया हुआ कृत्य मत बनाओ। नाचो, गाओ, संगीत बजाओ-और सेक्स को मानसिक मत होने दो। मानसिक सेक्स प्रामाणिक नहीं होता है; सेक्स सहज होना चाहिए।
माहौल बनाओ। तुम्हारा सोने का कमरा ऐसा होना चाहिए जैसे कि मंदिर हो। अपने सोने के कमरे में और कुछ मत करो; गाओ और नाचो और खेलो, और यदि स्वतः प्रेम होता है, सहज घटना की तरह, तो तुम अत्यधिक आश्चर्यचकित होओगे कि जीवन ने तुम्हें ध्यान की झलक दे दी।
पुरुष और स्त्री के बीच रिश्ते में बहुत बड़ी क्रांति आने वाली है। पूरी दुनिया में विकसित देशों में ऐसे संस्थान हैं जो सिखाते हैं कि प्रेम कैसे करना। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जानवर भी जानते हैं कि प्रेम कैसे करना, और आदमी को सीखना पड़ता है। और उनके सिखाने में बुनियादी बात है संभोग के पहले की क्रीडा और उसके बाद की क्रीडा, फोरप्ले और ऑफ्टरप्ले। तब प्रेम पावन अनुभव हो जाता है।
इसमें क्या बुरा है यदि आदमी उत्तेजित हो जाए और कमरे से बाहर नंगा निकाल आए? दरवाजे को बंद रखो! सारे पड़ोसियों को जान लेने दो कि यह आदमी पागल है। लेकिन तुम्हें अपने चरमोत्कर्ष के अनुभव की संभावना को नियंत्रित नहीं करना है। चरमोत्कर्ष का अनुभव मिलने और मिटने का अनुभव है, अहंकारविहीनता, मनविहीनता, समयविहीनता का अनुभव है।
इसी कारण लोग कंपते हुए जीते हैं। भला वो छिपाएं; वे इसे ढंक लें, वे किसी को नहीं बताएं, लेकिन वे भय में जीते हैं। यही कारण है कि लोग किसी के साथ आत्मीय होने से डरते हैं। भय यह है कि हो सकता है कि यदि तुमने किसी को बहुत करीब आने दिया तो दूसरा तुम्हारे भीतर के काले धब्बे देख ना ले ।
इंटीमेसी (आत्मीयता) शब्द लातीन मूल के इंटीमम से आया है। इंटीमम का अर्थ होता है तुम्हारी अंतरंगता, तुम्हारा अंतरतम केंद्र। जब तक कि वहां कुछ न हो, तुम किसी के साथ आत्मीय नहीं हो सकते। तुम किसी को आत्मीय नहीं होने देते क्योंकि वह सब-कुछ देख लेगा, घाव और बाहर बहता हुआ पस। वह यह जान लेगा कि तुम यह नहीं जानते कि तुम हो कौन, कि तुम पागल आदमी हा; कि तुम नहीं जानते कि तुम कहां जा रहे हो कि तुमने अपना स्वयं का गीत ही नहीं सुना कि तुम्हारा जीवन अव्यवस्थित है, यह आनंद नहीं है। इसी कारण आत्मीयता का भय है। प्रेमी भी शायद ही कभी आत्मीय होते हैं। और सिर्फ सेक्स के तल पर किसी से मिलना आत्मीयता नहीं है। ऐंद्रिय चरमोत्कर्ष आत्मीयता नहीं है। यह तो इसकी सिर्फ परिधि है; आत्मीयता इसके साथ भी हो सकती है और इसके बगैर भी हो सकती है।
- ओशो
(प्रस्तुति: सुजाता कुमारी)

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