व्यथा कटे वृक्ष की! (पर्यावरण दिवस) - Know How Tree Plantation Helps Usher in and Promote World Peace!

*व्यथा कटे वृक्ष की*

"...कहाँ गए
पपीहे मोर,
अलहड़
बच्चों का शोर?
ठूंठ सा
सरीखापन,
कहां गया
हरा भरा तन?
अवयव
इन के
सारे नष्ट,
मिला होगा
इनको
घोर कष्ट!
कहते हैं
ये सब,
नहीं
जिया
जाता अब...!"
मेरी आंखों के आगे आज भी उपरोक्त पंक्तियाँ ज्यों की त्यों तैर रही हैं जो मैंने अपने छात्र-जीवन में वर्ष 1983-84 में हिमाचल प्रदेश की हरी भरी पहाड़ियों पर स्थित अपने मिलिटरी स्कूल चायल (वर्तमान में राष्ट्रीय सैनिक स्कूल चायल) की स्कूली पत्रिका 'जॉरजियन' के लिए सृजित की थीं!
आज 35-36 वर्ष बीत जाने के पश्चात भी उक्त काव्य पंक्तियाँ मुझे पर्यावरण के महत्व का स्मरण कराती हुई चिढ़ाती सी प्रतीत हो रही हैं!
मानो कह रही हों - "क्यों बालकवि, अब तो तुम वानप्रस्थकवि हो गए हो, पर आज भी वृक्ष निर्ममता से वैसे ही काटे जा रहे हैं जैसे की तुम्हारे अलहड बचपन में! आज तो पर्यावरण की ऐसी की तेसी ओर अधिक हो गई है!"
सोचने को विवश हूं कि एक अकेला व्यक्ति कैसे पूरी पृथ्वी को पुनः हरा भरा करे...!
...तो, मुझे तो यही सूझ रहा है कि चलिए, आज हम सब प्रण करें कि वृक्षों को नहीं काटेंगे, अपितु वृक्षारोपण कर के पर्यावरण की सदैव रक्षा करेंगें!
मान लिया कि हम समस्त भूमंडल पर वृक्षारोपण नहीं कर सकते। परंतु, हम इतना तो कर ही सकते हैं कि अपने घर के आसपास या शहरों में अपनी हाउसिंग सोसायटी में सरकारी या असरकारी नर्सरी से पौधे ला कर लगा ही सकते हैं!
पर्यावरण की रक्षा के संबंध में नोएडा के सेक्टर ६२ की गेल अपारटमेंट हाउसिंग सोसाइटी एक उत्कृष्ट उदाहरण है। इस सोसायटी में अशोक, नीम और अमरूद आदि के पेड़-पौधें प्रचुर मात्रा में लगे हैं। यहाँ, सुबह सुबह कोयल की मधुर कूक कानों में मिश्री घोल देती है! शरद् ऋतु में इसके वृक्षों पर श्वेत रंग के साईबेरियन करेनों का विहंगम दृश्य देखने को मिलता है...! 
हमारे आसपास हरियाली छाने से हमें ढेरों लाभ प्राप्त होंगे! 
ऑक्सीजन की बढ़ी हुई मात्रा हमारे फेफड़ों और शरीर के विभिन्न अंगों को पूरी तरह स्वस्थ रखेगी। इससे प्राणायाम और योगासन द्वारा योग-साधना करने में भी बहुत अधिक सहायता प्राप्त होगी।
हरियाली के दृषटावलोकन से मन-बुद्धि सदैव प्रफुल्लित और शांति की आनंदित अवस्था में रहेंगे। 
साथ ही, मन में शांति रहेगी तो विश्व में भी शांति रहेगी क्योंकि शांत मन में अतिरेकी लोभ, लालच और क्रोध आदि की आसुरी प्रवृत्तियों के पनपने के लिए लेशमात्र भी स्थान न रहेगा।
सभी समस्याओं के शांतिपूर्ण समाधान को प्रोत्साहन मिलेगा। संक्षेप में,  रक्तरंजित युद्ध कभी भी नहीं होंगे या वे शनैः शनैः कम होते हुए इस धरा से समाप्त हो जाएंगे!
- डॉक्टर स्वामी अप्रतिमानंदा जी
(फोटो: सौजनय से - डॉक्टर स्वामी अप्रतिमानंदा जी)








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