नरेंद्र मोदी (भारत के प्रधानमंत्री) केवल और केवल एक शुद्ध 'मनुवादी' हैं क्योंकि वह केवल 'मन की बात' करते हैं. और 'मन' उत्प्न्न होता है 'मानस' से , न कि 'बुद्धि' रूपी गुहा या 'आत्मा' से.
सबको पता है कि 'मन' कितना निरकुंश है और इसके दुष्प्रभाव में निर्मल आत्मा पर भी गंदगी का आवरण पड़ जाता है।
यह उछ्रंखल 'मन' ही तो है जिसके दुष्प्रभाव में नरेंद्र मोदी जैसा चेला भी अपने गुरु लाल कृष्ण आडवाणी को एक ओर धकेल कर भारत का प्रधानमंत्री बन बैठा। यह उछ्रंखल 'मन' ही तो है जिसके दुष्प्रभाव में भाई भाई के बीच 'महाभारत' का युद्ध हो गया था। यह उछ्रंखल 'मन' ही तो है जिसके दुष्प्रभाव में दुनिया में आज भी क़त्ले आम जारी है।
पंजाबी 'गुरमुखी' लिपि में छोटे 'ु' की मात्रा को नहीं पढ़ा जाता है। जैसे कि 'जपु' में छोटे 'ु' की मात्रा को नहीं पढ़ कर इसे 'जप' पढ़ा जाता है। इसी तरह 'मनुस्मृति' में भी छोटे 'ु' की मात्रा को नहीं पढ़ कर इसे 'मनस्मृति' पढ़ा जाता है।
अर्थात, 'मनुस्मृति' ग्रंथ तो वास्तव में 'मन' की 'स्मृतियों' या 'यादों' पर आधारित ग्रंथ है, न की 'आत्मस्मृति' पर आधारित ग्रंथ . अर्थात , जिन विद्वानों ने 'मनुस्मृति' ग्रंथ के आधार पर सनातन भारतीय समाज पर ब्रह्मणवादी चार जातियों की 'वर्ण' व्यवस्था थोपी है , उन्होंने वास्तव में सनातन भारतीय समाज पर 'असमानता' के अपने 'मनमाने' विचार लादे हैं। अर्थात नक़ली फ़कीर नरेंद्र मोदी भी वास्तव में 'असमानता' का ही पोषक है।
असली फ़क़ीर डॉ स्वामी अप्रतिमानंदा जी के 'आत्मस्मृति' पर आधारित 'आत्मा', 'आत्मवाद' और 'आत्मीयता' के विचार ही सनातन भारतीय समाज में 'समानता' ला कर भारतवर्ष को 'जगद्गुरु' बना पाएंगे।
- स्वामी मूर्खानंद जी
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