ऑल इंडिया इंसानियत पार्टी जनहक में भारत सरकार से ज़ोरदार माँग करती है कि पंचकुला में २५ अगस्त २०१७ में अंधाधुंध पुलिस फायरिंग में हुये नरसंहार में डेरा सच्चा सौदा की निर्दोष महिला और पुरुष अनुयायियों की हुई दर्दनाक मौत की सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज द्वारा पूरी निष्पक्ष जाँच करवाये !

ऑल इंडिया इंसानियत पार्टी जनहक में भारत सरकार से ज़ोरदार माँग करती है कि पंचकुला में २५ अगस्त २०१७ में अंधाधुंध पुलिस फायरिंग
में हुये नरसंहार में डेरा सच्चा सौदा की बहुत सारी निर्दोष महिला और पुरुष अनुयायियों की हुई दर्दनाक मौत की सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज
द्वारा पूरी निष्पक्ष जाँच करवाये और दोषी पुलिस अधकारियों को नौकरी से निकाल दिया जाये! हम नेशनल हुम्न राइट्स कमीशन और नेशनल कमीशन फॉर वुमेन से भी इस संगीन मामले का तुरंत संज्ञान लेने की विनती करते हैं ! पाँच मिनट के अल्प समय में ३० से ज़्यादा लोगों की मौत को नरसंहार ही कहना उचित मालूम होता है....!
 
भारत एक कल्याणकारी प्रजातांत्रिक देश है न कि कोई निरंकुश तानाशाही। प्रजातंत्र में जनता को प्रदर्शन करने का पूरा क़ानूनी हक़ है। हम मानते हैं कि श्री राम रहीम को सज़ा मिले यदि वह दोषी हैं तो , परंतु इसकी सज़ा उनके प्रदर्शनकारी अनुयायिओं को पुलिस की गोलियों से भून कर न दी जाये! जलियाँवाला -काण्ड दोहराने के लिए हिंदुस्तान आज़ाद नहीं हुआ था!
श्री राम रहीम को दोषी करार दिये जाने के बाद और उसके बाद उन्हें अपने शिष्यों के आगे आ उन्हें शांत
रहने का आदेश देने का मौका दिए जाने के बजाय सीधे पुलिस की गाड़ी में बिठा कर निकाल लिए जाने से उनके प्रदर्शनकारी शिष्यों - शिष्याओं का उग्र हो कर बेकाबू हो जाना स्वाभाविक ही था ! तो भी , उनके प्रदर्शनकारी शिष्यों - शिष्याओं ने मिडिया कर्मियों पर अपना गुस्सा नहीं उतरना चाहिए था ! वरन , शांत रहना चाहिए था ! कहना तो आसान है , परंतु जिसके प्रियजन को पुलिस दबोच ले उस व्यक्ति का उग्र हो जाना स्वाभाविक है ! पुलिस ने कोताही बरती !
विश्वस्त सूत्रों के अनुसार हरियाणा की पुलिस के आला अधिकारियों ने टेलीविज़न चैनलों को उग्र बेक़ाबू प्रदर्शनकारियों के उग्र प्रदर्शन की तो लाइव फ़ोटोग्राफ़ी करने दी। परंतु जैसे ही पुलिस के कर्मचारियों ने पूरे नियमों को ताक पर रख कर उग्र भीड़ पर अंधाधुंध फायरिंग शुरू की, इन हरियाणा-पुलिस के आला अधिकारियों ने टेलीविज़न चैनलों को इस अंधाधुंध पुलिस फायरिंग की लाइव फ़ोटोग्राफ़ी नहीं करने दी ताकि इस पुलिस ज़्यादती का बाद में ह्यूमन राइट्स कमीशन के समक्ष कोई पुख़्ता सबूत ही न बचे !
नियम यह कहता है कि उग्र भीड़ पर पुलिस इस तरह फायरिंग करे कि बेक़ाबू लोगों के घुटनों के नीचे नीचे ही गोली लगे और वे गोली लगने से प्रभावित हो कर उग्रता करने में अक्षम हो जाएं।  मूल उद्देश्य उग्र प्रदर्शनकारी को जान से मारना नहीं होता है ! परंतु , हरियाणा पुलिस ने पाँच मिनट में ही आनन - फानन में उग्र लोगों के शरीर के कमर से ऊपर के हिस्सों पर इस तरह बेरहमी से फायरिंग की कि पाँच मिनट में ही ३० से ऊपर डेरा सच्चा सौदा के समर्थकों की जान चली गई ओर ३०० के क़रीब घायल हो गये ! मरने वालों में ज़्यादा तादाद उन निर्दोष महिलाओं और बुजुर्ग पुरुषों की है जो शांतिपूर्ण थे और जान बचा कर भागने में असमर्थ थे। मरने वाले कोई कश्मीरी अलगाववादी मिलिटेंट की तरह ऑटोमैटिक मशीनगनों से लैस उग्रवादी नहीं थे !
प्रदर्शन कर रही उग्र भीड़ को तितर बितर करने के लिए उस उग्र भीड़ में फँसे निर्दोषों की जान लेने का लाइसेंस हिंदुस्तान का कानून किसी को भी नहीं देता है। हम डीजीपी बी एस संधू की भूरी भूरी प्रशंसा करते हैं कि इस बहादूर पुलिस अधिकारी ने उग्र भीड़ को रोकने हेतु स्वयं आगे आ कर भयभीत पुलिस बल का नेतृत्व किया ! परंतु , गहरा अफ़सोस है कि यह एक अकुशल नेतृत्व था क्योंकि पाँच मिनट में ही कम से कम ३० लोगों की पुलिस फायरिंग में जानें चली गईं। जानकारों के मुताबिक़ पुलिस चाहती तो फायरिंग इस कुशल ढंग से हो सकती थी कि कोई जान जाती ही नहीं और अगर जातीं भी तो केवल इक्का - दुक्का ही जानें जातीं।  परंतु , भयभीत पुलिस वालों के हाथ - पाँव इस तरह फूल गये कि इन घबराये पुलिस वालों ने बिना सोचे - समझे अंधाधुंध ताबड़ - तोब गोलियाँ दाग दीं जिससे बहुत सारे निर्दोष शांत प्रदर्शनकारी मारे गए ! इस भयावह पंचकुला-पुलिस-ज़्यादती-काण्ड से सही सबक ले कर पुलिस बल को और अधिक मानवीय प्रशिक्षण देने की आवश्यकता है !
डेरा सच्चा सौदा के समर्थकों पर राजद्रोह का आरोप दाखिल कर हरियाणा की पुलिस ने अपने अधकचरे क़ानूनी ज्ञान की पूरी दुनिया में घोषणा कर दी है। मामला ज़्यादा से ज़्यादा OBSTRUCTION TO POLICE OFFICERS IN THE PERFORMANCE OF THE PUBLIC DUTY ही बनता है।  प्रतीत होता है कि भारतीय जनता पार्टी की हर विरोधी को राजद्रोही करार देने की गंदी मानसिकता (PSYCHOLOGY)  को भाँप कर हरियाणा प्रशासन और पुलिस अधिकारी हर किसी पर राजद्रोह की ऍफ़ आई आर दाख़िल कर देते हैं!
हम न्यायालय का पूरा समर्थन करते हैं ! परंतु , हम यह जानना चाहते हैं कि इस प्रजातांत्रिक देश में यह कैसा दोमुहा कानून है कि जब भारतीय जनता पार्टी , कांग्रेस आदि दिग्गज राजनैतिक पार्टियों के समर्थक सैकड़ों करोड़ों रुपयों की पब्लिक प्रॉपर्टी को राजनैतिक धरनों - प्रदर्शनों के दौरान नुकसान पहुँचाते और तहस - नहस करते हैं तब क्यों न्यायालय इन भारतीय जनता पार्टी , कांग्रेस आदि दिग्गज राजनैतिक पार्टियों के मुख्यालयों को सील नहीं करवाते हैं , तब क्यों न्यायालय  भारतीय जनता पार्टी , कांग्रेस आदि दिग्गज राजनैतिक पार्टियों की प्रॉपर्टी बेच कर राजनैतिक धरनों - प्रदर्शनों के दौरान हुए नुकसान  की भरपाई नहीं करवाते हैं ? परंतु , जब कोई धार्मिक संस्था के अनुयायी उग्र हो होश हवाश खो कर धरनों - प्रदर्शनों के दौरान पब्लिक प्रॉपर्टी को नुकसान पहुँचाते हैं तो न्यायालय तुरंत इन धार्मिक संस्थाओं की प्रॉपर्टी को सील कर उसे बेच कर भरपाई करने का आदेश दे देता है ! क्यों , क्या न्यायालय को धार्मिक संस्थाओं से कोई चिढ़ या एलेर्जी है या क्या न्यायालय को भारतीय जनता पार्टी , कांग्रेस आदि दिग्गज राजनैतिक पार्टियों से भय लगता है ?
एक प्रश्न और : हरियाणा के मंत्री राम विलास शर्मा पॉलिटिकल माईलेज लेने डेरा सच्चा सौदा के प्रदर्शनकारी अनुयायियों को खाना-पीना देने तो पंचकुला पहुँच गये, परंतु बाद में उग्र भीड़ को शांत करने के लिये उग्र भीड़ के आगे क्यों नहीं आये ? 
कुछ गलती इन रामपाल , राम रहीम जैसे बाबाओं के अपरिपक्व , अधूरे , अधकचरे राजनैतिक ज्ञान की भी है।  इन्हें पूरी तरह समझ में आ जाना चाहिये था कि उग्र प्रदर्शन से आप न्यायालय पर जबरदस्ती कोई दबाव नहीं डाल सकते हैं ! न्यायालय कोई अन्तर्यामी नहीं है और इसीलिए केवल सामने प्रस्तुत किये गये सबूतों को ही मानता है , चाहे वे सबूत सच्चे हों या झूठे! दबाव केवल सरकारों पर ही बनाया जा सकता है ! साथ ही , इन रामपाल , राम रहीम जैसे बाबाओं को अभी तक यह पूरी तरह ज्ञान हो जाना चाहिये था कि भारतीय जनता पार्टी , कांग्रेस आदि दिग्गज राजनैतिक पार्टियाँ इन रामपाल , राम रहीम जैसे राजनैतिक रूप से अपरिपक़्व अज्ञानी बाबाओं का उपयोग केवल इनके लाखों - करोड़ों अनुयायियों के वोट लेने के लिए ही करती हैं और इन उक्त राजनैतिक पार्टियों को इनके अनुयायियों के पुलिस फायरिंग में मरने से थोड़ा सा भी दुःख नहीं होता है ! जागो रे जागो , हिंदुस्तान जागो...!

(फ़ोटो : गूगल और इंडियन एक्सप्रेस के सौजन्य से )



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