पटियाला हाउस परिसर में छात्रों और पत्रकारों की न्याय एवं विधि के संरक्षक कुछ उचित वैचारिक राजनैतिक पथ से भटक गए वकीलों द्वारा पिटाई घोर निंदा के योग्य है।
परंतु , यक्ष प्रश्न यह है कि क्या सभी छात्र , पत्रकार और समाचारपत्र राष्ट्र विरोधी हैं?
नहीं , सभी छात्र , पत्रकार और समाचारपत्र राष्ट्र विरोधी नहीं हैं। मात्र उचित वैचारिक राजनैतिक पथ से भटक गए कुछ छात्र , पत्रकार और समाचारपत्र ही राष्ट्र विरोधी आग को सुलगाने में व्यस्त हैं। विद्यालयों और विश्वविद्यालयों में छात्रों को राजनीती करने की अपेक्षा मात्र अपनी पढ़ाई पर ही ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए !
कई पत्रकार और समाचारपत्र इस प्रकार सोचते हैं -
"जो कलम घिस्सू जितना बड़ा साहित्यिक चोर ,
जो राजनेता जितना बड़ा उपद्रवी ,
वह उतना ही बड़ा प्रसिद्ध लिखारी
और
उतना ही बड़ा राजनेता एवं महान कवि !"
तभी तो इन कतिपय पत्रकारों और समाचार पत्रों के लिए जे ने यू के कुछ मुटठी भर छात्रों के भारत - विरोधी विचार इतने महत्वपूर्ण बन जाते हैं कि वे इन समाचारपत्रों के पन्नों पर मुख्य समाचार बन जाते हैं ! जबकि इनसे कहीं अत्यधिक महत्वपूर्ण ऑल इंडिया इंसानियत पार्टी के राष्ट्र प्रेम और मानवता के कार्य इन समाचारपत्रों में कहीं भी थोड़ा सा भी स्थान नहीं पाते हैं... !
- स्वामी मूर्खानन्द जी
नहीं , सभी छात्र , पत्रकार और समाचारपत्र राष्ट्र विरोधी नहीं हैं। मात्र उचित वैचारिक राजनैतिक पथ से भटक गए कुछ छात्र , पत्रकार और समाचारपत्र ही राष्ट्र विरोधी आग को सुलगाने में व्यस्त हैं। विद्यालयों और विश्वविद्यालयों में छात्रों को राजनीती करने की अपेक्षा मात्र अपनी पढ़ाई पर ही ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए !
कई पत्रकार और समाचारपत्र इस प्रकार सोचते हैं -
"जो कलम घिस्सू जितना बड़ा साहित्यिक चोर ,
जो राजनेता जितना बड़ा उपद्रवी ,
वह उतना ही बड़ा प्रसिद्ध लिखारी
और
उतना ही बड़ा राजनेता एवं महान कवि !"
तभी तो इन कतिपय पत्रकारों और समाचार पत्रों के लिए जे ने यू के कुछ मुटठी भर छात्रों के भारत - विरोधी विचार इतने महत्वपूर्ण बन जाते हैं कि वे इन समाचारपत्रों के पन्नों पर मुख्य समाचार बन जाते हैं ! जबकि इनसे कहीं अत्यधिक महत्वपूर्ण ऑल इंडिया इंसानियत पार्टी के राष्ट्र प्रेम और मानवता के कार्य इन समाचारपत्रों में कहीं भी थोड़ा सा भी स्थान नहीं पाते हैं... !
[फ़ोटो: डीएनए वेब टीम व गूगल के सौजन्य से]
[टिप्पणी: इस लेख में व्यक्त विचार स्तंभकार स्वामी मूर्खानन्द जी के अपने स्वयं के व्यक्तिगत विचार हैं। इन विचारों से ऑल इंडिया इंसानियत पार्टी का सहमत होना कोई अनिवार्य नहीं है। इस संबंध में न्यायिक विवादों के निपटारे हेतु दिल्ली उच्च न्यायालय ही एक मात्र विकल्प है।]
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