IS IT IN INDIAN DEMOCRACY's INTEREST TO BAN PRIME MINSTER FROM PARTICIPATION IN POLITICAL ACTIVITIES?

क्या भारत जैसे लोकतन्त्र के हित में प्रधानमन्त्री जैसे पदासीन व्यक्ति पर किसी भी राजनीतिक दल के लिए चुनाव प्रचार करने पर रोक लगनी चाहिए?

भारत जैसे लोकतन्त्र के हित में प्रधानमन्त्री, मुख्यमन्त्री आदि जैसे पदासीन व्यक्ति पर किसी भी राजनीतिक दल के लिए चुनाव प्रचार करने पर रोक तुरंत लगनी चाहिए।

संवैधानिक पदों पर आसीन नागरिकों द्वारा किसी भी राजनीतिक दल के लिए चुनाव प्रचार करने से भारतीय लोकतन्त्र का अहित होता है। इसके कई कारण हैं।

संवैधानिक पदों पर आसीन होने के पश्चात वह व्यक्ति किसी राजनीतिक दल का प्रतिनिधि नहीं रह जाता है। वह सभी नागरिकों का प्रतिनिधि बन जाता है जिसमें वे नागरिक भी सम्मिलित हैं जो उसके राजनीतिक विरोधी हैं।

उदाहरण के लिए प्रधानमन्त्री के पद को ही लीजिये। इस पद को प्राप्त करने के बाद वह सभी नागरिकों का प्रतिनिधि बन जाता है। इस पद को प्राप्त करने के बाद उसे कोई नैतिक अधिकार नहीं रह जाता है कि वह इस कुर्सी पर बैठ कर अपने राजनीतिक दल का प्रचार करे, या विरोधी राजनीतिक दलों के विरुद्ध कार्य करे क्योंकि प्रधानमन्त्री के पद पर आसीन नागरिक को पूरी तरह से निष्पक्ष ही रहना अनिवार्य है।

यदि प्रधानमन्त्री के पद पर बैठा व्यक्ति अपने राजनीतिक दल का प्रचार करता है तो इस कार्य को CONFLICT OF INTEREST (हितों का संघर्ष) माना जाना चाहिए। हितों का संघर्ष ऐसे व्यक्ति के अधिकार क्षेत्र से बाहर होता है। यह उस पद के अधिकारों में शामिल नहीं है।

इसलिए, प्रधानमन्त्री पद पर आसीन व्यक्ति पर यह कड़ा नियम लागू होना चाहिए कि वह किसी भी राजनीतिक पार्टी या लोगों का प्रत्यक्ष या परोक्ष प्रचार ना करे। भारत में फिलहाल यह नियम केवल राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति तथा सरकारी कर्मचारियों के पदों पर ही लागू है।

प्रधानमन्त्री, मंत्री या मुख्यमन्त्री जिस पार्टी से आता है, उस पार्टी के राजनीतिक कार्य को उस पार्टी के उन कार्यकर्ताओं पर छोड़ देना चाहिए जिन्होंने कोई संवैधानिक पद सत्ता में प्राप्त नहीं किया है और जो सरकार से बाहर हैं।

भारत के राजनीतिज्ञों की वर्तमान मानसिकता किसी भी रोक को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं दिखती है। भले ही वे सत्ता में हों या सत्ता से बाहर विपक्ष में।

इसलिए, देश में प्रबुद्ध वर्ग को लोकहित में लोक आंदोलन करना होगा और शासकों पर लोकदबाव डाल कर लोकहित में कानून बनवाना होगा कि प्रधानमन्त्री, मंत्री, मुख्यमन्त्री, राष्ट्रपति आदि जैसे किसी भी चुने जाने वाले संवैधानिक पद पर आसीन कोई भी नागरिक किसी भी प्रकार की राजनीतिक गतिविधि में भाग नहीं लेगा । ऐसा करना संभव है। याद कीजिये कि कैसे दल-बदल कानून भी तब लागू हुआ था जब देश में प्रबुद्ध वर्ग ने लोकहित में लोक आंदोलन किया और शासकों पर लोकदबाव डाला! 



~ Dr Swaamee Aprtemaanandaa Jee

(The writer is an acclaimed independent Scientific Healer, yoga and ayurveda-Practitioner, Spiritual/Research/Political Scientist, Gynaecologist, Epidemiologist, Geostrategist, economic/political-Geographer, Geohumanist, Cosmologist, and citizen-Economist)

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